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अलबेली आम्रपाली ८५
"क्या अयोग्य लगता है ?"
"नहीं. बहुत ही आकर्षक है ।"
कुछ समय पश्चात् दोनों अपने-अपने अश्वों पर बैठकर पड़ाव से बाहर निकल गए। उनके साथ चार सशस्त्र शिकारी थे । आर्य शीलभद्र के पास धनुषare थे और एक भाला भी था । उसने अपनी कमर में तलवार लटका रखी थी । आम्रपाली ने केवल धनुष-बाण ही रखे ।
१६. भूतिया आवास
भूतिया आवासगृह वाली पहाड़ी के मार्ग की ओर चारों शिकारियों के साथ आर्य शीलभद्र और देवी आम्रपाली अपने-अपने अश्वों पर आरूढ़ होकर जा रहे थे ।
देवी आम्रपाली श्वेत काम्बोजी अश्व पर आरूढ़ थी । वह अश्व अत्यन्त तेजस्वी था । देवी आम्रपाली अश्वचालन में अत्यन्त निपुण थी, क्योंकि उसके पिता उसको धनुर्विद्या और अश्वचालन की शिक्षा देने में प्रारम्भ से ही सतर्क थे और निपुण शिक्षकों के द्वारा उसे ये दोनों विद्याएं हस्तगत कराई थीं ।
शीलभद्र आम्रपाली पर पहले से ही मुग्ध था किन्तु देवी का पुरुष वेश और अश्वचालन को देखकर वह और अधिक मुग्ध हो गया ।
शीलभद्र के चारों साथी आगे चल रहे थे। उसके पीछे इन दोनों के अश्व चल रहे थे । इस शिकार योजना की पृष्ठभूमि में शीलभद्र का एक हेतु था । वनप्रदेश के नीरव एकान्त में वह वैशाली के इस उभरते यौवन को अपना करना चाहता था । इस उद्देश्यपूर्ति के लिए उसने एक सरोवर के किनारे विश्राम की सारी सामग्री जुटा रखी थी। वह चाहता था कि मृगया के बहाने वहां आकर आम्रपाली के हृदय में वह अपना स्थान बना लेगा । उस वन- प्रदेश में वराह, बाघ आदि भयंकर प्राणी रहते थे । शीलभद्र चाहता था कि ऐसे भयंकर प्राणियों का शिकार कर वह अपनी अपार शक्ति का परिचय आम्रपाली को करा सके। वह जानता था कि सुन्दर स्त्रियां सदा वीरत्व के प्रति मुग्ध होती हैं ।
वे चलते-चलते नदी के किनारे पहुंचे । शीलभद्र बोला - "देवि ! सामने दो पहाड़ियां दीख रही हैं न ?"
"हां, दीख रही हैं ।"
"इन दोनों पहाड़ियों के मध्य एक छोटा अत्यन्त सघन वन है । वहां हमें खलना होगा ।"
" सघन वन में ?"
"हां, देवि ! वराह का शिकार कोई सामान्य बात तो नहीं है ।"
"मैंने तो सुना है कि।"
"क्या ?"