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८२ अलबेली आम्रपाली
___महाबलाधिकृत का पुत्र पद्मकेतु भी आ पहुंचा। उसने धन्यवाद देते हुए कहा-"महाशय ! आपने अपनी दीर्घदृष्टि का स्पष्ट परिचय कराया। आपने हजारों के प्राण बचाए. सबका कल्याण किया।"
बिबिसार ने उसके धनुष-बाण को लौटाते हुए उसका अत्यन्त आभार माना। पद्मकेतु बोला .. "आप वैशाली के तो नहीं लगते।" "नहीं, मैं मालवीय हूं।" "आपका शुभ नाम ?" "जयकीर्ति..." बिंबिसार बोला।
कुछ ही समय में 'जयकीति' का नाम वहां के लोगों की जीभ पर नाचने लगा और वे सभी जयकीर्ति के साथ बतियाते हुए मेले की ओर चल पड़े।
१८. मृगया के लिए प्रयाण बिंबिसार ने जाते-जाते देखा कि लोगों के झुंड आम्रपाली को देखने जा रहे हैं। सैकड़ों लिच्छवी युवक आम्रपाली के नयनाभिराम शिविर के पास पहुंचे । वहां गणतन्त्र के सैनिक पहरा दे रहे थे। युवकों ने आम्रपाली से मिलने की बात कही।
सैनिक बोले- "देवी भोजन कर रही हैं । अभी वे किसी से मुलाकात नहीं करेंगी, क्योंकि कल के नृत्य से वे थक चुकी हैं। भोजन के पश्चात् वे विश्राम करेंगी। आज भी देवी मेले के नृत्यमंच पर नृत्य करेंगी।" ___लोग वहां से अपने-अपने घर चले गएं । आम्रपाली की एक मुख्य परिचारिका शिशिरा ने भोजन-खण्ड में प्रवेश कर कहा- "देवि ! आज बड़ी अद्भुत घटना घटी। एक हाथी पागल हो गया। यदि उसको अन्य दिशा में नहीं मोड़ा होता तो आज यहां हजारों लाशें बिछ जातीं। एक युवक ने अपनी समयसूचक दृष्टि से हाथी की दिशा मोड़कर हजारों के प्राण बचा लिये । उस हाथी का सामना करने का साहस किसी में नहीं जागा। उस हाथी के पीछे सैकड़ों व्यक्ति आ रहे थे और हटो, हटो की आवाज से सबको सावधान कर रहे थे। इतने में ही एक नवजवान हाथ में धनुष बाण लेकर आगे आया, हाथी के सामने पहुंचा और एक ही बाण से हाथी की संड विध डाली। वह हाथी रोषाक्रुष्ट हो यमराज की भांति विकराल बनकर उस युवक के पीछे भागा। वह नवजवान उस हाथी को मेले के पड़ाव से बहुत दूर ले गया और एक साथ दो बाण छोड़कर उसके दोनों पैर बिंध दिए-और हाथी लड़खड़ाकर नीचे गिरा और कुछ ही क्षणों के पश्चात् वह यमराज का अतिथि बन गया।" ____ "ओह ! तब तो लिच्छवियों की धरती वीरता से शून्य नहीं है।" आम्रपाली
ने भाव भरे हृदय से कहा। . “महादेवि ! वह नवजवान लिच्छवी नहीं था।"