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८० अलबेली आम्रपाली ___ और बिंबिसार ने एक लिच्छवी जवान के कंधे से तूणीर खींच लिया और धनुष मांग कर ले लिया। वह नवयुवक और कोई नहीं, महाबलाधिकृत का पुत्र पद्मकेतु ही था । बह वोला-"महाशय ! यह आप क्या कर रहे हैं । आप बाण मत फेंकना । बाण से हाथी मुड़ेगा और अधिक विकराल बन जाएगा।"
किन्तु बिंबिसार ने कोई उत्तर नहीं दिया और वायु वेग से भीड़ को चीरता हुआ हाथी से आगे निकल गया। ___ गजराज की लाल आंखें युवक बिंबिसार की ओर मुड़ीं। बिंबिसार ने आगे बढ़कर, कुछ दूर जा हाथी की सूंड को एक बाण से बींध डाला और हाधी अधिक उत्तेजित हो गया।
धनंजय आगे नहीं जा सका । वह कांप उठा 'क्योंकि पागल हाथी बिंबिसार को लक्ष्य कर उसके पीछे दौड़ रहा था।
बिबिसार चाहता था कि हाथी को जनमेदिनी की भीड़ वाले स्थान से किसी मैदान में लाया जाए । इसीलिए वह आगे-आगे दौड़ने लगा। किन्तु हाथी के पीछे पीछे आने वाले हजारों राजपूत और अनेक सैनिक यह नहीं समझ सके कि बिबिसार लोगों को हाथी से अभय बनाने के लिए दौड़ रहा है। उन्होंने यही समझ रखा कि इस युवक ने विमर्शपूर्वक कार्य नहीं किया है और यह नवजवान रोषाग्नि से भड़के हुए गजराज के पैरों तले कुचला जाकर प्राण त्याग देगा । किसी का लाडला यह सुकुमार धरती की मिट्टी चाटने लगेगा।
धनंजय का हृदय धड़क रहा था। अपने प्रिय युवराज को बचाने के लिए क्या करना है, वह समझ नहीं सका और पास में कोई शस्त्र भी तो नहीं था।
अब क्या करे?
बिंबिसार पूरा सावचेत था। उसके तूणीर में बाण थे और उसे अतुल आत्मविश्वास था कि वह इन बाणों से हाथी को वश में कर लेगा।
बिंबिसार अपने प्रयत्न में पूर्ण सफल हो गया। वह पागल हाथी को पड़ाव के बाहर मैदान में खींच ले गया। हाथी बहुत दूर नहीं था और वह थकावट भी महसूस नहीं कर रहा था क्योंकि पागलपन और थकावट का आपसी सम्बन्ध नहीं होता।
बिंबिसार दौड़ते-दौड़ते हाथी को बहुत दूर ले गया। हाथी के मन में भी रोष था कि जिस व्यक्ति ने तीर से सूंड को घायल किया है, उसको धरती पर पटक कर पीस डाला जाए।
पीछे-पीछे आने वाले लोग आतुर नयनों से परिणाम को देखने के लिए आतुरता से दौड़ रहे थे। बिंबिसार ने सोचा और राक्षसराज शंबुक से सीखे धनुर्विद्या के रहस्य स्मृति-पटल पर छा गए । उसने एक साथ दो बाण धनुष पर चढ़ाए और प्रत्यंचा को कानों तक खींच कर पूर्ण पराक्रम के साथ बाणों को