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अलबेली आम्रपाली ७७
"आप इस प्रदेश से अजान दीखते हैं"-वृद्ध ने प्रश्न किया।
"हम परदेशी हैं । सामने की पहाड़ी पर एक सुनसान खण्डर हैं। वहां ठहरे हैं। यहां हलवाई की खोज में आए हैं।' तत्काल वृद्ध अपनी टूटी-फटी खाट से खड़ा हो गया और टेकरी की ओर अंगुलि-निर्देश करते हुए बोला- "क्या आप सामने की टेकरी पर उतरे हैं ? वहां एक टूटा-फूटा घर है ? एक कुंड है ?"
बिंबिसार ने कहा- "हां, हम वहीं रुके हैं।"
वृद्ध बोला-'आप परदेशी हैं। आपकी अवस्था भी छोटी है। कृपा कर आप पहाड़ी से तत्काल अन्यत्र चले जाएं । उस पहाड़ी पर एक भयंकर भूत रहता है । अनेक अनजान मनुष्य इस प्रस्तरगृह में मौत का आलिंगन कर चुके हैं।"
वृद्ध की बात सुनकर बिंबिसार ने पूछा-'क्या तुम वन महोत्सव के विषय में कुछ जानकारी दे सकते हो?" ___ "महाराज ! वैशाली का यह उत्सव पूर्व भारत में बेजोड़ गिना जाता है । पांच दिनों तक यह चलेगा। वहां हजारों नर-नारी आएंगे । वहां विविध प्रकार की खाद्य सामग्री की अनेक दुकानें लगेंगी। उत्सव का स्थान यहां से एकाध कोस दूर है। आप टेकरी से सीधे वहीं चले आएं । खाद्य सामग्री मिल जाएगी।" वृद्ध ने कहा।
वे सब टेकरी पर आए और वृद्ध पुरुष की बात मानकर तीनों उत्सव को देखने निकल पड़े। शंबुकराज द्वारा प्रदत्त कुछ स्वर्ण और दो घोड़े वहीं छोड़ वे नीचे उतर आए।
बिम्बिसार ने शंबुक द्वारा प्रदत्त मुक्तामाला और पिता द्वारा प्रदत्त रत्नमाला दोनों अपने साथ रख लीं।
जब वे तीनों उत्सव में पहुंचे तब मध्याह्न बीत चुका था और वह उत्सव स्थल ऐसा लग रहा था मानो कोई नया नगर बसा हो। तीनों आगे से आगे जा रहे थे। एक स्थान पर उन्होंने देखा-"हजारों व्यक्तियों का कलरव उछल रहा
धनंजय ने पूछा- “यह कलख किसलिए?"
"आपको ज्ञात नहीं है ? संसार की अप्रतिम सुन्दरी आम्रपाली वैशाली से आ रही है । देवी आम्रपाली हमारी जनपदकल्याणी है। उसका रूपदर्शन भी भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है ।" यह कहकर वह दौड़ता हुआ चला गया।
धनंजय ने बिम्बिसार से कहा-"महाराज ! हम भी उस ओर चलें?"
"नहीं मित्र ! हम सुन्दरियों को निहारने नहीं निकले हैं। हमें एक शर्राफ की दुकान पर जाना है।
बिंबिसार और धनंजय ने देखा कि लोग अपनी-अपनी दुकानों को वैसे ही छोड़ आम्रपाली को देखने निकल पड़े हैं। वहां तीन दुकानें थीं। दो पर कोई