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७६ अलबेली आम्रपाली
वैशाली के विशिष्ट व्यक्तियों ने उत्सव की निर्धारित भूमि पर अपने-अपने तंबू लगवाए।
जनपरकल्याणी के लिए विशेष व्यवस्था की गयी थी। वहां सैकड़ों दासदासियां और रक्षक-दल आ गए। यह शिविर भव्य और रमणीय था। सभी से यह अकेला ही चमक रहा था।
शीलभद्र का तंबू भी रमणीय था। वह दिवस के प्रथम प्रहर में ही अपने साथियों के साथ वहां आ गया था। उसके हृदय में आशा का एक मधुर गीत झंकृत हो रहा था। संसार की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी के हृदय में प्रेमांकुर उगाने और रूप की प्रतिमूर्ति सुकुमार आम्रपाली को प्राप्त करने की भावना साकार होगी, यह श्रद्धा उसके प्राणों में अनन्त आनंद को उभार रही थी। ___ जिस समय आम्रपाली ने शिकार का निमंत्रण स्वीकृत किया उसी क्षण से शीलभद्र के प्राणों में मधुर-मिलन की बंसरी बजने लग गयी थी। वह आशा को और पुष्ट बना रही थी।
यौवन और आशा दोनों साथी हैं। दोनों चंचल होते हैं। दोनों को अपनी चंचलता का ख्याल नहीं आता।
इधर शंबुक वन से प्रस्थान कर बिंबिसार अपने साथियों के साथ इसी पर्वतश्रृंखला के पास आ ठहरा। उसे यह ज्ञात नहीं था कि कुछ ही दूरी पर वैशाली की जनता भव्य वनमहोत्सव का आनन्द ले रही है। शंबुक महाराज के कथनानुसार बिंबिसार इस पर्वत पर कुछ दिनों तक विश्राम करना चाहता था। वह किसी पल्ली की टोह में था। पल्ली नहीं मिली। धनंजय पहाड़ी पर चढ़ा। उसने देखा, एक प्रस्तर गृह है। वह खण्डहर हो गया है। उसने नीचे उतरकर बिंबिसार को बताया।
बिंबिसार वहां कुछेक दिन ठहरने के लिए ऊपर गया। ऊपर जाने के बाद बिंबिसार ने प्रस्तर-गृह के चारो ओर देखा । उसे वह स्थान उपयुक्त लगा।
जब चारों वहां रह गए, तब धनंजय ने एक भृत्य को सारे समाचार कहकर राजगृह की ओर भेज दिया।
दूसरे दिन भोजन की सामग्री के लिए बिंबिसार और धनंजय-दोनों अपनेअपने अश्वों पर चढ़कर एक पल्ली में गए और एक भृत्य को वहीं प्रस्तर-गृह की सम्भाल के लिए छोड़ दिया।
पल्ली के सभी लोग मेले में चले गए थे। एक वृद्ध अपनी खाट पर बैठा था। धनंजय ने कहा- "इस बस्ती में कोई नजर नहीं आता। यह निर्जन कैसे है ?"
"महाराज ! सभी वन-महोत्सव में गए हैं।" बिंबिसार ने कहा- "कैसा उत्सव ?"