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अलबेली आम्रपाली ७१
प्रासाद में रूप-यौवन की किरणें बिखेरती हुई प्रेक्षकों को दिग्मूढ़ बना रही थी।
प्रथम यौवन के मादक स्पर्श से प्रफुल्ल और चंचल बनी हुई नवयौवना नारी का अभिसार हृदय को बींधकर निकलने वाली कविता जैसा होता है । अनेक बार ऐसा अभिसार जीवन में मधुर स्वप्न की शृंखला बनकर रह जाता है।
आम्रपाली अभी सोलह वर्ष की थी और उसका यौवन, रूप, कला, माधुर्ययह सारा अप्सराओं को लज्जित करने वाला था। देवी का साहचर्य पाने के लिए अनेक तरुण लालायित थे।
आज आषाढ़ी पूर्णिमा का उत्सव था और आम्रपाली ने इस उत्सव का अभिनंदन अभिसार नृत्य द्वारा किया और यह अभिसार नृत्य इतना मादक था कि दर्शक अपने आपको विस्मृत कर बैठे थे।
अभिसार नृत्य ! प्रियतम से मिलने की उत्कट उकलाहट के होने पर भी लज्जा और भय का भार इतना मोहक बन गया था कि अभिसारिका के मन का चंचल आवेश अचानक दब जाता' विमूढ़ बन जाता।
आम्रपाली प्रियतम से मिलने के लिए आतुर हो रही थी। मेघाच्छन्न आकाश । रात का समय । लज्जा, संकोच और चंचलता के साथ आम्रपाली अपने प्रिय से मिलने निकल पड़ी । किन्तु सांकेतिक स्थल ज्यों-ज्यों निकट आता, त्योंत्यों लोक-लाज और भय का भार उसके नयन और चरणों को मानो स्तंभित कर रहा था।
पूर्व भारत के श्रेष्ठ वाद्यकार अभिसार के भावों को वाद्यध्वनि से मस्त बना रहे थे।
पिय-मिलन की मदभरी तमन्ना नर्तकी आम्रपाली के नृत्याभिनय से साकार बनकर प्रेक्षकों को रसमुग्ध बना रही थी।
और।
नील पद्म प्रासाद में एक शय्या पर महानाम का निर्जीव शरीर पड़ा था। वैद्य ने कहा-"चिड़िया चुग गयी खेत ।" अब कथा समाप्त है। और मुख्य रक्षक आम्रपाली को सूचना देने दौड़ा। उस समय आम्रपाली का नृत्य यौवन अवस्था में था। नृत्यगृह के आभ्यंतर भाग में अनेक नृत्यांगनाएं, परिचारिकाएं खड़ी थीं। एक नर्तकी प्रियतम की रूप-सज्जा कर तैयार होकर खड़ी थी, क्योंकि कुछ ही क्षणों के पश्चात् उसे नृत्यभूमि में प्रवेश करना था, क्योंकि पिउमिलन के उत्तेजक क्षण अब निकट आ गए थे। ___ आम्रपाली की प्रिय सखी माध्विका वहीं थी। उसने सुना कि महानाम का अवसान हो गया है । आम्रपाली को सूचित कैसे किया जाए. इसी विचार में वह एक ओर चली गयी। वहां धूम्रावरण करने वाले चार व्यक्ति बैठे थे । माध्विका ने कहा-"तत्काल धूम्रावरण करो।" वे अवाक रह गए । माध्विका