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७२ अलबेली आम्रपाली
ने पुन: कहा। उन्होंने तत्काल संगृहीत धूम्र को नृत्यभूमि में प्रसृत करने के लिए एक यंत्र को घुमाया।
अभी प्रियतम के मिलन के क्षण प्राप्त नहीं हुए थे। अभिसारिका थिरकती हुई, भयार्त बनकर प्रीतम के मिलने के संकेत-स्थल की ओर देख रही थी। आंख में उमंग थी और काया पर लज्जा के अलंकार दृग्गोचर हो रहे थे। प्रेक्षकों के धन्य-धन्य की आवाज से सारा प्रेक्षागृह गूंज उठा। और उसी समय धूम्रावरण प्रारंभ हो गया।
नृत्याभिनय में तल्लीन बनी हुई आम्रपाली का चेहरा इस आकस्मिक धूम्रावरण से मुरझा गया।
माध्विका भीतर आयी। आम्रपाली को यह कहकर बाहर ले गयी कि पिताश्री अचानक बीमार हो गए हैं। ___ अभिसारिका की वेशभूषा में ही आम्रपाली रथ में बैठ नीलपद्म प्रासाद की ओर चल पड़ी।
नीलपद्म प्रासाद के पास आकर रथ रुका । आम्रपाली नीचे उतरी और तीव्र गति से अपने बापू के खंड की ओर चली।
महानाम शय्या पर चिरनिहित अवस्था में पड़े थे। मुंह खुला था। शेष शरीर पर एक कौशेय वस्त्र था। उनकी शय्या से दूर एक सेवक बैठा था। ___ आम्रपाली ने देखा, 'बापू ! बापू !' कहती हुई उनके निर्जीव शरीर पर गिर पड़ी। वहीं वह मूच्छित हो गयी। ___ अर्धघटिका के पश्चात् मूर्छा टूटी। वह फिर करुण स्वर में बोली"बापू! बापू !"
दीपक बुझ गया। वह भांडागारिक ऋषभदास की ओर देखकर बोली"चाचा ! नीड़ लुट गया। मेरा आश्रय टूट गया। मैं अब बिना आधार की हो गयी।" उसके बोल आगे नहीं फूटे । वे सदन के नीचे दब गये।
आम्रपाली ने नृत्यांगना की पोशाक उतारी। हिमकण से सफेद वस्त्र धारण किये। सादी वेशभूषा कर अलंकारशून्य बन गयी। उस समय भी उसके रूप को निहार कर वहां की स्त्रियां दिग्मूढ़ बन गयीं।
मध्याह्न से पूर्व ही महानाम के नश्वर शरीर का दाह-संस्कार कर दिया गया।
शोकमग्न आम्रपाली को सान्त्वना देने नगर के सभी गणमान्य व्यक्ति आजा रहे थे।
इधर शंबुक वन में राक्षसराज का परम अतिथि बिंबिसार वहां से ऊब चुका था। वह राक्षसराज से बार-बार विदा करने की प्रार्थना करता रहा । शंबुक उसकी प्रार्थना को मान नहीं रहा था । धनुविद्या के कुछ रहस्य शंबुक ने बिंबिसार