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अलबेली आम्रपाली ६१ विचित्र प्रकार के वाद्य गरज रहे थे। आकाश में मेघों का गर्जारव भी हो रहा था।
प्रियंबा मस्त होकर सबके साथ नाच रही थी। उसने अपनी मां से जयकीर्ति की आराधाना के विषय में जान लिया था। वह बार-बार उसकी ओर देख रही थी।
नत्य के बीच भी यदा-कदा मद्यपान चलता था।
बिबिसार और धनंजय थक गये थे। उन्होंने सोचा नृत्य सारी रात चलेगा। पर हम।
बिबिसार ने राक्षसराज से आज्ञा ली और पास वाले मन्दिर में जा विश्राम किया।
१३. रहस्यमय खजाने की ओर दस दिन बाद वर्षा शान्त हुई । बिबिसार ने राक्षसराज से कहा- "महाराज ! अब मैं विदा होना चाहता हूं।" शंबुक बोला--"मित्र ! अभी तक मैंने तेरा कोई सत्कार-सम्मान नहीं किया है । तूने मेरी महान् चिन्ता को दूर कर डाला, पर मैं अभी तक उसका ऋण नहीं चुका सका। देख, मेरे इस छोटे से प्रदेश में कैसी समृद्धि है, मेरे सैनिक कितने बलवान् हैं। मेरे धनुर्धर कितने निपुण हैं। यह सब तुझे देखना है, मुझे दिखाना है । सुन, एक बार मैंने अपने धनुर्धरों में से दो-चार की परीक्षा लेनी चाही। मैंने उनको एक खुले मैदान में बुलाकर आकाश की ओर इशारा करते हुए कहा-'देखो आकाश में वह पक्षियों का झुण्ड उड़ रहा है। उनको तुम अपने बाणों का निशाना बनाकर नीचे पृथ्वी पर पटको।' उन्होंने तत्काल धनुष्य पर बाण चढ़ाए और उन पक्षियों की ओर बाण छोड़े । देखते-देखते वे सारे पक्षी बाणों से बिंध गये और पृथ्वी पर आ गिरे।"
"महाराज ! आप अपूर्व संपदा के धनी हैं। आपका सहज-सरल व्यवहार मुझे यहां रोक रहा है । पर।"
"पर क्या? क्या यह उतावल इसलिए हो रही कि नवपरिणीता पत्नी का स्मरण हो आया है ? किन्तु इस वर्ष मैं अपने कल्याणकारी मित्र को कैसे जाने दूंगा।" ___ बिंबिसार बोला--"ऐसा कुछ नहीं है। आपकी ममता मेरे लिए बंधन बन गई है । आप कहते हैं तो मैं कुछ दिनों के लिए रुक जाऊंगा।"
शंबुक ने पूछा-"क्या तू अविवाहित है ?" "हां, कृपावतार ! परन्तु घर जाते ही मेरा विवाह हो जाने की संभावना
शंबूक ने जयकीति के दोनों हाथों को पकड़ते हुए कहा--"मित्र! तू