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६० अलबेली आम्रपाली
बिंबिसार अभी भी राग की आराधना में तल्लीन हो रहा था। उसे कुछ भी ज्ञात नहीं था।
धनंजय इस चमत्कार से आश्चर्यमूढ़ हो गया। शंबुक और उसकी पत्नियां प्रियंबा के साथ नाचने लगीं। धनंजय भी अपने आपको सम्भाल नहीं सका । वह तत्काल उठा और अपने स्वामी बिबिसार को बांहों में जकड़ लिया।
राग स्थगित हो गयी। बिबिसार ने देखा-प्रियंबा की शय्या खाली पड़ी है। खण्ड में सभी नाच रहे हैं । प्रियंबा भी नाच रही है। धनंजय बोला"महाराज ! मैं आपका सेवक आपके चरणों में...।"
बीच में ही बिंबिसार बोल उठा-"मित्र ! मैं भी आश्चर्यचकित हूं। इससे पहले मेरी कसौटी कभी नहीं हुई।"
पाहर वर्षा का तांडव भी महाघोष राग जैसा भयंकर बन गया था।
सभी का नाचना बन्द हो गया। राक्षसराज बिबिसार के पास आया और अपनी प्रचण्ड भुजाओं से बिंबिसार को एक नन्हें बालक की तरह उठा लिया। वह बोला--- "जयकीति ! तूने मेरे पर महान् उपकार किया है । जो चाहे वह मांग ले । मैं तेरी हर मांग पूरी करूंगा।"
बिबिसार ने कुछ स्वस्थ होकर कहा--"महाराज ! आज मुझे भी बहुत आनन्द हो रहा है । मुझं इस प्रकार की सफलता मिलेगी, यह कल्पना भी नहीं थी। परन्तु..." __ "बोलो मित्र ! बिना संकोच किए कहो।"
बिंबिसार ने कहा-"महाराज ! राजकन्या का तेल मर्दन करें और फिर उसे स्नान कराकर यह प्रबन्ध करें कि रात भर उसे नींद न आने पाये।"
"आज रात को तो उत्सव होगा । तू जो चाहे वह मांग।" "महाराज ! मैं सोचकर मागेगा।"
"जैसी तेरी इच्छा", कहकर राक्षस राज ने उत्सव करने की आज्ञा प्रसारित की और यह भी बता दिया कि रातभर जागरण होगा और मन्दिर के सामने उत्सव आयोजित होगा।
रात का समय । सभी मन्दिर के सामने विशाल मैदान में एकत्रित हो गये ।
शंबुक अपने पूरे परिवार के साथ वहां आया। प्रियंबा भी साथ थी।
सभी राक्षसों के मध्य मदिरा के भांड को लेकर दासियां घूम रही थीं। शंबुक के पास ही बिंबिसार अपने साथियों के साथ बैठा था और राक्षस जाति के उत्सव को मनोयोग से देख रहा था।
मध्यरात्रि का समय । सभी राक्षस मण्डलाकार नृत्य करने लगे । शंबुक के आग्रह से बिंबिसार भी अपने साथियों के साथ नृत्य में शामिल हुआ।