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अलबेली आम्रपाली ३७ वीणा पर एक ग्राम की द्रुतलय को बजाना भी कठिन होता है, वहां बिंबिसार तीनों ग्रामों पर द्रुत-अतिद्रुत लय बजा रहा था।
कार्तिक स्वामी ने कहा-"वत्स ! वीणा के तीनों ग्रामों की साधना तेरी दासी बन गई है। यह देवी वादित्र तुझे सदा प्रेरणा और बल देता रहेगा। मेरा आशीर्वाद है कि तेरी कीर्ति सूर्य के समान चमकेगी।
शिष्य ने गुरु चरणों को पकड़ लिया। रात्रि का चौथा प्रहर चल रहा था।
वे मन्दिर से बाहर आए और जब वे अपनी कुटीर में पहुंचे तब पक्षी कलरव करने लग गए थे।
प्रातः बिंबिसार गुरु का आशीर्वाद ले अपने अश्व पर बैठकर राजभवन की ओर चल पड़ा।
रानी त्रैलोक्यसुन्दरी ने एक षड्यन्त्र ढूंढ लिया था। यह उपाय राजा को भी जंच गया था।
कुछ वर्ष पूर्व ही यह राजाज्ञा प्रचारित की गई थी कि जिसके भवन में आग लगेगी उसको मगध की सीमा से बाहर भेज दिया जाएगा।
जब मगध की राजधानी कुशाग्रपुर थी, तब यदा-कदा घरों में आग लग जाती थी। फलस्वरूप राजा को भारी हानि होती थी। आग लगने का कारण प्रत्यक्ष नहीं था। परन्तु यह माना गया था कि भवनों में रहने वाले नौकरचाकर ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। इस आज्ञा के प्रचारित होने के लगभग एक माह बाद यह उपद्रव शान्त हो गया था। देश-निष्कासन के भय से भवनवासी सतर्क हो गए थे।
किन्तु एक बार महाराज प्रसेनजित के राजमहल में आग लग गयी थी और तब उन्होंने कुशाग्रपुर से निकलकर राजगृह नगरी का निर्माण किया था।
रानी त्रैलोक्यसुन्दरी की यह योजना राजा के मन को भा गई थी वह श्रेणिक के आगमन की बाट देखने लगी।
बिंबिसार की मां जैन मत की उपासिका थी। इसलिए दूसरे राजकुमारों की अपेक्षा श्रेणिक के संस्कार उत्तम थे। वह संस्कारी या। किन्तु उसे मां का ममत्व बहुत दिनों तक नहीं मिला और मां एक दिन अचानक चल बसी।
फिर भी मां के संस्कार उसमें उत्तरोत्तर बढ़ते गए।
त्रैलोक्यसुन्दरी का लाडला एकाकी पुत्र दुर्दम अभी किशोर अवस्था में था। पर वह मदिरां और चूत के व्यसन से ग्रस्त था । उसकी परिचर्या के लिए उसकी मां ने दस रूपवती दासियों को नियुक्त किया था। मां को यह कल्पना भी नहीं थी कि जहां रूप होता है वहां आग भी होती है और यदि यौवन का