________________
अलबेली आम्रपाली ३६
नहीं चाहता था और साथ-ही-साथ अपनी सीमा को घटाना भी नहीं चाहता था । इस वन- प्रदेश में स्वर्ण, वज्र, नीलम और माणिक्य की खानें थीं । इसलिए सभी अन्यान्य राज्य इसको हस्तगत करना चाहते थे। क्योंकि इसकी प्राप्ति उनके राज्य की समृद्धि का कारण बन सकती थी ।
इन दो हजार वर्षों में राक्षस जाति को नष्ट करने का बार-बार प्रयास होता रहा और राक्षस जाति लगभग नष्ट हो चुकी थी । कुछेक राक्षस राजा दक्षिण में चले गए ।
पूर्व भारत में केवल शंबुक ही राक्षसराज के रूप में शासन कर रहा था । वह केवल अपनी जाति के बचे लोगों की रक्षा करने में रस लेता था । वह किसी राज्य पर आक्रमण नहीं करता था। क्योंकि वह जानता था कि उसके पूर्वज लड़-लड़ कर ही विनष्ट हुए हैं।
शंबुक अपनी परम्परागत अनेक विद्याओं का धनी था। उसके पास देवी की सिद्धि थी और वह अपने छोटे से वन- प्रदेश में शान्ति से रह रहा था । शंबुक वन में प्रवेश करने वाला कोई भी मनुष्य जीवित नहीं निकल पाता था । इस प्रकार हजारों व्यक्ति शंबुक वन में मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे । कोई ही वहां से जीवित नहीं निकल पाता था ।
राजा प्रसेनजित इस प्रदेश को प्राप्त कर लोगों को निर्भय बनाना चाहते थे । उन्होंने दो बार इस पर आक्रमण भी किया पर बुरी तरह पराजित होकर
पलायन करना पड़ा ।
इस शंबुक वन को कैसे प्राप्त किया जाए, इस विषय पर वे मंत्रणागृह में विचार करने बैठे थे ।
जब मंत्रणा गृह में यह चर्चा चल रही थी, ठीक उसी समय रानी त्रैलोक्यसुन्दरी के भवन में रानी की सखी श्यामांगी आ पहुंची ।
रानी त्रैलोक्यसुन्दरी ने अपने विवाह के समय वन-विस्तार से अपनी सखी के रूप में श्यामा को साथ ले आई थी । वह सखी चालीस वर्ष की प्रौढ़ नारी थी और जैसा नाम वैसा ही गुण था उसमें । त्रैलोक्यसुन्दरी की यह प्रमुख परामर्शदात्री और किसी भी प्रकार का काम करने में निपुण थी। वह वहीं राजभवन में एक छोटे मकान में रहती थी ।
श्यामा को देखते ही रानी चौंक कर बोली - " श्यामा ! इतना विलम्ब कैसे ?" "विलम्ब नहीं हुआ है देवि ! आपका काम कर दिया है । मेरा दास वह काम सरलता से कर देगा। किसी को कुछ पता भी नहीं लग सकेगा और वह श्रेणिक कुमार के भवन में आग लगा देगा । " "कब होगा यह काम ?” " आज या कल ही ।"