________________
अलबेली आम्रपाली ४३
रात्रि का तीसरा प्रहर । राजकुमार श्रेणिक के महल के पीछे के भाग से आग की ज्वालाएं निकलने लगीं। राज्य के रक्षक और महल के पहरेदार चिल्लाने लगे। वे इधर-उधर भागने लगे और आग पर काबू पाने की सामग्री जुटाने लगे।
कुछ ही समय में वहां सैकड़ों दास-दासी और कर्मकर एकत्रित हो गए।
महाराज कुमार श्रेणिक अपनी महाबिम्ब वीणा को लेकर महल से बाहर आ गए।
महाराज प्रसेनजित को यह समाचार मिला । वे अन्यान्य रानियों के साथ वहां पहुंचे। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि महल की इस आग में कोई जीवित प्राणी नहीं जला।
सभी ने राजकुमार के दीर्घ आयुष्य की कामना की। आग बुझ गई।
रानी त्रैलोक्यसुन्दरी श्रेणिक के दीर्घ आयुष्य की कामना बार-बार व्यक्त करने लगी। ___ उसे यह पता नहीं था कि वह आग श्रेणिक के महल में नहीं, उनके द्वारा निर्मित आशा के महल में लगी है । वह इस घटना से अपने स्वप्न के साकार होने की कल्पना कर रही थी। पर वह स्वप्न आज इस घटना से बिखर कर नष्ट हो गया था। रानी इसकी कल्पना कैसे कर पाती? ____ यह तो केवल महाराज प्रसेनजित और आचार्य अग्निपुत्र ही जानते थे। दूसरा कोई नहीं।
६. देश का त्याग राजभवन में लगी आग के समाचार धीरे-धीरे नहीं, पवन गति से प्रसृत हुए । सारे राज्य में इसकी चर्चा होने लगी। पर आग लगने के कारण को कोई नहीं जान सका।
नाना प्रकार की अटकलें लगाई जा रही थीं। चारों ओर गुप्तचर विभिन्न उपायों से कारण की खोज में घूम रहे थे।
महाराजा प्रसेनजित ने श्रेणिक कुमार को पूछा-"कुमार ! आग के संबंध में क्या तुझे किसी पर संशय है ?"
"नहीं महाराज।"
"यह तो आश्चर्य की बात है। प्रिय राजकुमार ! एक बात है जब तक आग लगाने वाले व्यक्ति का अपा-पता नहीं लगता तब तक मुझे चिन्तित ही रहना पड़ेगा।"
"चिन्ता क्यों ?" "वत्स ! प्राचीन राजाज्ञा यह है कि जिसके भवन में आग लगती है, उसको