________________ (ख) कुछ गाथाएं ऐसी हैं जो भाष्य की स्वोपज्ञ वृत्ति व बृहद्वृत्ति में नियुक्ति गाथा के रूप में संकेतित व व्याख्यात हैं, किन्तु चूर्णि में वे प्राप्त नहीं होती। (ग) कोई गाथा चूर्णि में नियुक्तिगाथा के रूप में है, किन्तु वह गाथा भाष्य की स्वोपज्ञ टीका व बृहद्वृत्ति में उपलब्ध नहीं होती। (घ) कुछ गाथा नियुक्ति की हरिभद्रीय टीका में नहीं मिलती, किन्तु भाष्य की स्वोपज्ञवृत्ति एवं मलधारी हेमचंद्र कृत व्याख्या में प्राप्त हैं। (ङ) कोई. गाथा नियुक्ति की हरिभद्रीय टीका में एवं अन्य टीका में नियुक्ति गाथा के रूप में प्राप्त है, किन्तु भाष्य की स्वोपज्ञ वृत्ति व मलधारी हेमचंद्र कृत व्याख्या में प्राप्त नहीं है। (च) भाष्य की स्वोपज्ञ वृत्ति में कोई गाथा नियुक्ति गाथा रूप में प्राप्त है, किन्तु मलधारी हेमचन्द्र कृत टीका में वह प्राप्त या व्याख्यात नहीं है। विद्वानों व आलोचकों के अनुसार, नियुक्ति-गाथाओं के क्रम व संख्या-परिमाण के परस्पर-विसंवाद का कारण यह है कि कुछ गाथाएं बाद में प्रक्षिप्त हो गई हैं। यह भी संभव है कि भाष्य की कुछ गाथाएं नियुक्ति का अंग बन गईं तथा अन्य ग्रन्थों से उद्धृत गाथाओं को भी नियुक्ति का अंग बना दिया गया है। कौन-सी गाथा प्रक्षिप्त है या अन्यकर्तृक है- यह जानना कठिन है, किन्तु इस दिशा में पूज्य समणी डा. कुसुमप्रज्ञा जी का प्रयास उल्लेखनीय है जिन्होंने आवश्यकनियुक्ति का (प्रथम भाग, सानुवाद) संस्करण सम्पादित किया है और पादटिप्पणियों में मूल नियुक्ति-गाथाओं व संदिग्ध गाथाओं को चिन्हित करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। नियुक्तिः अनुयोगपद्धति का अङ्ग - 'नियुक्ति' का अर्थ (सूत्र की) व्याख्या है। किन्तु इस व्याख्यान में अनुगम' या अनुयोग पद्धति का अवलम्बन विशेष रूप से लिया जाता है। सूत्र का वास्तविक अर्थ यह है- इस प्रकार सूत्र व अर्थ का परस्पर सम्बन्ध स्थिर करना 'नियुक्ति' है। वस्तुतः ‘नियुक्ति' एक विशेष व्याख्या पद्धति है जो 'अनुयोग-पद्धति' का अङ्ग है। सूत्र-व्याख्यान की अनुयोग-पद्धति के तीन क्रमिक (सोपान) अंग माने गये हैं- (1) सूत्रार्थ निरूपण, (2) (सूत्र स्पर्शिक) नियुक्ति, और (3) समग्रता से (विस्तृत) विवेचन, जिसमें उक्त-अनुप्रसक्त, अर्थात् प्रासंगिक उपयोगी विषयों 1. नियुक्ति: व्याख्यानम् (वि. भाष्य, गा. 965) / 2. नियुक्ति: अनुगमभेदत्वाद् व्याख्यानात्मिका एव भवति (वि. भाष्य, 965 बृहवृत्ति)। 3. अत्थो सुयस्स विसयो ततो भिन्नं सुयं पुहत्तं ति। उभयमिदं सुयनाणं नियोजणं तेसिं निञ्जत्ती (वि. भाष्य, गाथा-1071)। तयोः सूत्रार्थयोः परस्परं निर्योजनम्- अस्य सूत्रस्य अयमर्थः इत्येवं सम्बन्धनं नियुक्तिः (वि. भाष्य, गा. 1071 पर बृहद्वृत्ति)। RB0BRBRBROWROOR [37] RB0BAROBARB0BCROBAR