________________ आवश्यक निर्यक्ति और आचार्य भद्रबाह आगमों पर जो पद्यात्मक टीकाएं प्राकृत में लिखी गईं, उनमें चूर्णि, नियुक्ति व भाष्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन परम्परा में 'नियुक्ति' एक विशेष व्याख्यान पद्धति है जिसका अनुसरण नियुक्तिकार व भाष्यकार -दोनों ने विशेष रूप से किया है। नियुक्तिकार ने सूत्र में आए प्रत्येक पद के, विशेषकर पारिभाषिक पद के व्युत्पत्तिपरक विविध अर्थों का प्रकाशन करते हुए नय व निक्षेपों के माध्यम से विशिष्ट व्याख्या पद्धति के द्वारा सूत्रार्थ के हार्द को स्पष्ट किया है तथा विषयवस्तु का सर्वांगीण विवेचन किया है। नियुक्ति' के स्वरूप तथा इससे सम्बन्धित व्याख्या पद्धति का सामान्य परिचय आगे दिया जा रहा है। आवश्यक सूत्र पर रचित्त प्राकृतपद्यात्मक व्याख्या आवश्यक-नियुक्ति' को आचार्य भद्रबाहु की कृति के रूप में मान्यता प्राप्त है। आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक सूत्र पर ही नहीं, अन्य अनेक आगमों पर नियुक्तियों की रचना की है। स्वयं नियुक्तिकार (भद्रबाहु) ने दस आगमों पर नियुक्ति रचने का संकेत किया है'। वे दश आगम हैं- आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प (बृहत्कल्प तथा पंचकल्प), सूर्यप्रज्ञप्ति व ऋषिभाषित / सूर्यप्रज्ञप्ति व ऋषिभाषित पर नियुक्तियां अब उपलब्ध नहीं हैं। इन सब नियुक्तियों में आवश्यक नियुक्ति' उनकी प्रथम रचना है। आवश्यक नियुक्ति की गाथाओं का क्रम व संख्या वर्तमान में विशेषावश्यक भाष्य की गाथाएं और नियुक्ति गाथाएं मिश्रित रूप में प्राप्त हैं, तथापि नियुक्ति गाथाओं को भाष्यगाथाओं से पृथक् सूचित करने हेतु गाथाओं के आगे 'नियुक्तिगाथा' इस प्रकार निर्दिष्ट किया गया है। जिनदास गणि महत्तर कृत आवश्यक चूर्णि (संस्कृत-प्राकृत मिश्रित व्याख्या) मुख्यतया आवश्यक नियुक्ति' का अनुसरण करते हुए लिखी गई है और इसमें भाष्य की गाथाओं का भी यत्र-तत्र व्याख्यान है। इस चूर्णि में भी नियुक्ति-गाथाओं को संकेतित किया गया है। आ. नियुक्ति की हस्तलिखित प्रतियों, तथा इस पर रचित चूर्णि, भाष्य, भाष्य पर रचित स्वोपज्ञ वृत्ति एवं अन्य टीकाओं में नियुक्ति-गाथाओं का क्रम एक जैसा नहीं मिलता। साथ ही नियुक्ति गाथाओं की संख्या में भी परस्पर विसंवादिता दृष्टिगोचर होती है। अतः आवश्यक नियुक्ति की वास्तविक (मूल) गाथाएं कौन-सी हैं, तथा उनकी नियत संख्या क्या है- यह जानना कठिन हो जाता है। तात्पर्य यह है कि अलग-अलग व्याख्याग्रन्थों व संस्करणों के आधार पर एक नियत क्रम व नियत संख्या का निर्धारण कठिन है। इनमें जो विसंवादिता पाई जाती है, उसके कारणों का निदर्शन संक्षेप में इस प्रकार है : (क) मलधारी हेमचंद्र कृत बृहद्वृत्ति में किसी गाथा को नियुक्ति गाथा के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, किन्तु वह गाथा न तो भाष्य में और न ही उसकी स्वोपज्ञ वृत्ति में नियुक्तिगाथा के रूप में प्राप्त है। 1. द्र. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा- 1074-76, नियुक्ति गाथा-84-86। ROPOROR ROR [36] RB0RemeRO0CROn@R