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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ-( इच्छामि भंते राइयम्मि/देवसियम्मि आलोचेउं ) हे भगवन् ! मैं रात्रि में या दिन में व्रतों में लगने वाले दोषों की आलोचना शुद्धि पूर्वक करने की इच्छा करता हूँ । ( पंच महव्वदाणि ) पाँच महाव्रत हैं ( तत्थ ) उनमें ( पढमं महब्बदं ) पहला महाव्रत ( पाणादिवादादो वेरमणं ) प्राणों के व्यपरोपण से रहित है ( विदियं महव्वदं ) दूसरा महाव्रत ( मुसावादादो वेरमणं ) असत्य भाषण/मृषावाद से रहित है ( तिदियं महव्वदं ) तीसरा महाव्रत ( अदिण्णा दाणादो वेरमणं ) बिना दी वस्तु के ग्रहण से रहित है ( चउत्थ महव्वदं ) चौथा महाव्रत ( मेहुणादो वेरमणं ) मैथुन सेवन से रहित है ( पंचमं महच्वदं ) पाचवाँ महाव्रत ( परिग्गहादो वेरमणं ) परिग्रह से रहित है ( छ? अणुव्य ) पक्षमा छठा अगुव्रत । इनायगादो वेन) रात्रिभोजन से रहित है।
समिदीए-समितियाँ ( इरिया समिदीए ) ईर्या समिति, ( भासा समिदीए ) भाषा समिति, ( एसणा-समिदीए ) एषणासमिति, ( आदाण निक्खेवण समिदीए ) आदाननिक्षेपण समिति, उच्चार-पस्सवण-खेल-सिंहाण-वियडिपइट्ठावणियासमिदीए ) टट्टी, पेशाब, खखार, नासिका मल, गोमय आदि पित्तादि विकार को क्षेपण करना प्रतिष्ठापना समिति है। इसी का दूसरा नाम उत्सर्ग समिति हैं।
(मणगुत्तीए ) मनोगुप्ति ( वचिगुत्तीए ) बचनगुप्ति ( कायगुत्तीए ) कायगुप्ति । ( णाणेसु ) ज्ञानों में ( दंसणेसु ) चारित्रों में ( बावीसाय परीसहेसु ) बावीस प्रकार के परीषहों में ( पणवीसाय भावणासु) २५ प्रकार की भावनाओं में ( पणवीसाय किरियासु ) २५ प्रकार की क्रियाओं में ( अट्ठारससीलसहस्सेसु ) अठारह हजार शीलों में, ( चउरासीदिगुण सयसहस्सेसु ) चौरासी लाख गुणों में ( बारसण्हं संजमाणं ) बारह प्रकार के संयमों को ( बारससंग्रहं तवाणं ) बारह प्रकार तपों को ( बारसण्हं अंगाणं) बारह प्रकार अंगों को ( चोदसण्हं पुवाणं ) चौदह पूर्वो को ( दसण्हं मुंडाणं ) दस प्रकार के मुंडों को ( दसण्हं समण धम्ममाणं ) दस प्रकार के श्रमण धर्मों को (दसण्हं धम्मज्झाणाणं ) दस प्रकार के धर्म्यध्यान को ( णब्वइं बंभचेर-गुत्तीणं ) नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्ति में ।