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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ( कारिदो ) कराया हो ( वा ) अथवा ( समणु-मण्णिदो ) करते हुए की अनुमोदना की हो ( तस्स ) तत्संबंधी ( मे ) मेरे ( दुक्कडं ) दुष्कृत ( मिच्छा ) मिथ्या हों। ___भावार्थ- हे भगवन् ! असंख्यातासंख्यात पञ्चेन्द्रिय जीव अंडज, पोतज, जरायुज, उद्धेदिय आदि का उत्तापन, विराधन मैंने स्वयं किया हो, कराया हो या अनुमोदना की हो तो मेरा पापकार्य मिथ्या होवे।
अंडज-अण्डों से उत्पन्न होने वाले कबूतर आदि !
पोतज-पैदा होते ही चलने-फिरने व भागने लगते हैं उत्पन्न होते समय जिन जीवों के शरीर के ऊपर किसी प्रकार का आवरण नहीं होता उन्हें पोतज कहते हैं यथा--सिंह, हिरण आदि ।
जरायुज-जर सहित पैदा होने वाले गाय, भैंस, मनुष्य आदि । जाली के समान मांस और खुन से व्याप्त एक प्रकार की थैली से लिपटा जो जीव जन्म लेता है वह जरायुज है।
संस्वेदिम-पसीना से उत्पन्न होने वाले लूं आदि । उभेदिय-भूमि को भेदकर उत्पन्न होने वाले।
८४ लाख योनि-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुकायिक ७-७ लाख, नित्य निगोद, इतर निगोद ७-७ लाख, वनस्पतिकाय १० लाख, दोतीन-चार इन्द्रिय २-२ लाख, पश्चेन्द्रिय पशु ४ लाख, देव-नारकी ४-४ लाख और मनुष्य १४ लाख 1 इस प्रकार कुल ८४ लाख योनि हैं।
उत्तापनं-त्रस व स्थावर जीवों का प्राणों का वियोग रूप मारण उत्तापन कहलाता है।
परिसापन-त्रस-स्थावर जीवों को संताप पहुँचाना परितापन है। विराहणं-उस-स्थावर जीवों को पीड़ा पहुँचाना, दुखी करना विराधन है ।
उपधात-बस स्थावर जीवों को एकदेश अथवा पूर्ण रूप से प्राणों से रहित करना उपघात है। सामान्य से ये चारों शब्द प्राय: एकार्थवाचक हैं।