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विधानुशासन 1295
सर्वेषामपि मंत्राणं मनसा जिव्हया शनै:
उचैरपि जपेद् भक्त्या विहितोमन्यते क्रमात्
॥ १५ ॥
सभी मंत्रो को धीरे धीरे मनोयोग पूर्वक जिल्हा से कम अथवा अत्यंत भक्ति युक्त होने पर जोर से
भी जपे ।
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एकैकाक्षर मंत्राणा भेदं ज्ञात्वा पृथक् पृथक् पूर्वमेव प्रकर्त्तव्या पुष्पैश्चाष्ट सहस्रकैः
॥ १६॥
एक एक अक्षर मंत्र के भेदों को पृथक पृथक जान कर पहले ही आठ हजार पुष्पों से बिखेरे।
सवृंतकं समादाय प्रसूनं ज्ञानमुद्रया मंत्रमुच्चार्य तन्मंत्री मुंचेदुच्च्छावास रेचनात्
॥ १७ ॥
मंत्री इंदल सहित पुष्पों को लाकर ज्ञानमुद्रा धारण करके एक एक मंत्र पढ़कर श्वास के रेचक के साथ छोड़ देवे चढ़ा दें ।
जपाद विकलो मंत्रः स्व शक्तिः लभते परां होमार्चनादिभि स्तस्य तृप्तास्यादधिदेवता
॥ १८ ॥
मंत्र जपा जाने से अपनी शक्ति को प्राप्त होता है और होम पूजन आदि से उस मंत्र के स्वामी देवता' तृत होते हैं।
एकस्तावत्रखङ्गः पुनरपि निशि तो यथेष्ट सिद्धि करः एकस्तावद्योद्धा सन्नद्धोन्यत् किमा पृच्छां
॥ १९ ॥
. जिस प्रकार तेज शस्त्र अकेला होने पर भी चलाने से कार्य की सिद्धि करता है तो उसको यदि एक योद्धा भी तैयार होकर लेकर जुट जावे तो क्या पूछना |
एकस्तावद्वन्हिः पुनरपि पवनाहतोन कुर्य्यात् किं एको मंत्रः पुनरपि जप होम द्युतोऽस्य किम साध्यं
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और जिसप्रकार अकेली ही अग्नि पवन से झपकी जाने पर क्या करती है उसी प्रकार अकेला मंत्र भी जप और होम से युक्त होने उसके लिए पर क्या असाध्य है।
जपकाले नमः शब्दं मंत्र स्याते प्रयोजयेत्
होम काले पुनः स्वाहा मंत्र स्यायं सदा क्रमः
॥ २१ ॥
जप के समय मंत्र के अंत में नमः शब्द और होम के समय में मंत्र के अंत में स्वाहा शब्द लगाएं यह मंत्र का सदा क्रम है।
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