Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव-प्रपंच कथा
शिक्षा देने हेतु आये हों, और वे मानवीय हितों एवं भावों को ध्यान में रख कर, चेष्टा तथा सम्भाषण करने में कल्पित किये गये हों । '1
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डॉ. जान्न की उक्त परिभाषा के अनुसार नीतिकथा के तीन मूल तत्त्व स्पष्ट होते हैं- १. पात्र, २. हेतु एवं ३. कल्पना तत्त्व । इन तीनों का स्वरूपनिर्धारण, उक्त परिभाषा के अनुसार, हम निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं
१. पात्र - मानवेतर ( बुद्धिहीन ) चेतन प्राणी तथा अचेतन पदार्थ |
२. हेतु - किसी नीतितत्त्व की शिक्षा देना, या उसका स्वरूप- प्रतिपादन ।
३. कल्पना तत्त्व - मानवीय हितों एवं भावों को ध्यान में रखते हुए, ऐसे पात्रों की कल्पना, जिनमें मानवोचित सम्भाषरण और चेष्टाओं की कल्पना करना सहज सम्भव हो ।
संस्कृत साहित्य की नीति कथाओं के प्रमुख पात्र, मानवेतर प्रारणी- पशु-पक्षी रहे हैं । ये अपनी-अपनी कहानियों में, मनुष्य की ही भांति सम्पूर्ण व्यवहार करते ये पाये जाते हैं । हर्ष - विषाद, प्रेम- कलह, हास्य- रुदन, युद्ध-सन्धि, उपकार - अपकार एवं चिन्ता - उत्कण्ठा जैसे भावात्मक व्यवहारों में उनका श्राचरण, मानव जैसा ही होता है । यही पशु-पक्षी, अपनी-अपनी कहानियों में, व्यावहारिक राजनीति एवं सदाचार के सूक्ष्मतम रहस्यों और उनकी उपलब्धियों का, तथा इन सब की साधनभूत गूढ़ मंत्ररणाओं तक को, बड़े स्वाभाविक ढंग से प्रतिपादित करते देखे जाते हैं । किन्तु उपलब्ध नीतिकथा साहित्य में, एक भी ऐसी कथा नहीं मिलती, जिसमें, अचेतन / निर्जीव पात्रों को स्वीकार किया गया हो । हाँ, ऋग्वेद में, उषा से सम्बन्धित एक कविता है । 2 किन्तु उसमें दृश्य का प्राकृतिक सौन्दर्य ही अभिव्यक्त हुआ है । वहाँ पर, प्रकृति, जीवन्त स्वरूप में उपस्थित अवश्य हुई है, पर वह, किसी कथा / आख्यान के पात्र जैसा कार्य / व्यवहार नहीं करती। इसलिए इस उषा वर्णन में, प्रकृति के मानवीयकरण का विश्लेषरण, हम स्वीकार करेंगे। क्योंकि पात्र बन कर, किसी कहानी में कार्य / व्यवहार करना, एक अलग बात है । इस पात्र - कार्य / व्यवहार की समानता, प्रकृति के मानवीयकरण से एकदम विपरीत बैठती है । इसलिए, डॉ० जान्सन की परिभाषा में 'कभी-कभी अचेतन पदार्थ' की पात्रता का सिद्धान्त कथन चिन्तनीय प्रसङ्ग उपस्थित कर देता है ।
सन् १८४२ में, लन्दन में फेबल्स ( Fables) नाम से एक कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ था । इसमें अलग-अलग लेखकों की जो लघुकथाएं, सम्पादक द्वारा
Lives of the English Poets Vol. I, Edited By. G. Birckback Hill, Oxford, Goy. P. 283
२.
ऋग्वेद १/४८/१-१६
३. Fables : Editor G. Moir Bussey. London, 1842
१.
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