Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
वस्तुतः, दिगम्बर और श्वेताम्बर, दोनों ही परम्पराओं में मान्य आगमों के नाम लगभग एक जैसे ही हैं। जो कुछ थोड़ा बहुत अन्तर परम्परा भेद से परिलक्षित होता है, उसका कोई ऐसा महत्त्व नहीं है, जिसका दुष्प्रभाव, मौलिक मान्यताओं पर अपनी छाप डाल पाता हो।
उपलब्ध दिगम्बर साहित्य में प्राचार्य कुन्दकुन्द की रचनाओं का विशिष्ट स्थान है । इनमें ढेर सारे कथानक, पाख्यान और चरित मिलते हैं । भावना की उपयोगिता, साधना के क्षेत्र में कितनी महत्त्वपूर्ण है ? इसका बहुमुखी परिचय, 'भावपाहुड' का अध्ययन करने से स्वतः मिल जाता है। निस्संग हो जाने पर भी, 'मान' कषाय की उपस्थिति के कारण बाहुबलि के चित्त पर कालुष्य बना ही रहा, अपरिग्रही मुनि मधुपिंग को 'निदान' के कारण द्रव्यलिङ्गी बने रहना पड़ा, वशिष्ठ मुनि की भी दुर्दशा, इसी निदान के कारण, कुछ कम नहीं हुई। बाहुमुनि को, क्रोधाविष्ट होकर दण्डक राजा का नगर भस्म कर देने के परिणामस्वरूप रौरव नरक तक भोगना पड़ा, दीपायन को भी द्वारका नगरी भस्म करने के फलस्वरूप अनन्तसंसारी बनना पड़ा, और भव्यसेन मुनिराज, द्वादशाङ्ग एवं चौदह पूर्वो के पाठी होते हुये भी, सम्यक्त्व के अभाव में, भाव-श्रामण्य प्राप्त नहीं कर पाये ।
इन कथाओं के साथ, भावश्रमण शिवकुमार का एक ऐसा कथानक भी जुड़ा हुआ है, जिसमें इन्हें, युवतियों से घिरा रहने पर भी विशुद्ध चित्त और आसन्नभव्य बने रहने की भूमिका में चित्रित किया गया है । कुन्दकुन्दाचार्य के ही 'शीलपाहुड' में सात्यकि पुत्र का एक और भावपूर्ण कथानक वरिणत है ।
'तिलोय-पण्णत्ति' में त्रेसठ शलाका-पुरुषों की जीवन-घटनाओं का प्रभावपूर्ण वर्णन है । वट्टकेर के 'मूलाचार' में एक ऐसी घटना का वर्णन किया गया है, जिसमें, एक ही दिन, मिथला नगरी की कनकलता आदि स्त्रियों, और सागरक आदि पुरुषों की हत्या का वर्णन है । 'मूलाराधना' में अनेकों सुन्दर पाख्यान हैं। जिनमें, सुरत
१. भावपाहुड गाथा ४४ २. वही ३. वही
वही , ४६
४.
वही
५.
वही
६. वही ७. वही गाथा ५२ ८. शील प्राभृत गाथा ५१ ६. मूलाचार १/८६-८७
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