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विरल विभूति
महासती श्री उमरावकंवरजो 'अर्चना' के बारे में अाज तक सैकड़ों विद्वान् इतना कुछ कह व लिख चुके हैं कि आपके बारे में कुछ कहना या लिखना मेरे शब्दों या भाषा की सीमा से बाहर का काम है। तथापि मेरे मत में आपकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि और विशिष्टता ALL IN ONE होने की है। जनसाधुनों का इतिहास ऐसी महान् विभूतियों से भरा-पूरा है जो त्याग, तपस्या, संयम, योग एवं ज्ञान-साधना, साहित्यसृजन, उपदेश (प्रवचन), श्रावकों से तर्क, धर्म व ज्ञान की त्रिवेणी पर आधारित चर्चा एवं वार्तालाप, साधु-संस्थानों की संगठन व नेतृत्व क्षमता, दुःखी एवं पीड़ित जीव मात्र के प्रति असीम दया भावना, अपने शिष्य-शिष्याओं के प्रति समभाव और उनको आत्मोन्नति के मार्ग पर निरन्तर बढ़ाते रहने की प्रयत्नशीलता, ध्यान, धर्म एवं शिक्षा के प्रचार-प्रसार की सक्रिय उत्कंठा, मिलनसारितापूर्ण मधुर एवं प्रानन्दपूर्ण व्यवहार-कूशलता, आदि अनेक संस्थागत गुणों में से एक या एकाधिक गुणों के धारक रहे हैं। किन्तु ऐसे सन्त-सतियांजी विरले ही हए हैं और होंगे जो प्रायः इन सब गुणों को एक साथ प्रात्मसात किये हए हों। संपूर्ण जैन समाज को इस बात का गर्व होना स्वाभाविक ही है कि आप ऐसी विरल विभूतियों में से एक हैं।
-कनकमन जैन, जावरा
पर-कल्याण के लिये समर्पित व्यक्तित्व
फूलों-सा माधुर्य, फलों-सी मिठास, हिमालय-सी ऊंचाई, समुद्र-सी गहराई, धरती-सी सहनशीलता, यह सब प्रत्येक मानव में पाना महादुर्लभ है। परन्तु इस धरा पर जिन-शासन की शृगार, जियो और जीने दो को प्रचारिका, श्रद्धया महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. में यह सब एक स्थान पर ही पाया जाता है और जब यह सभी गुण एक स्थान पर केन्द्रित होकर अपना प्रादुर्भाव प्रकट करते हैं तो वह मनुष्य मनुष्यत्व ही नहीं देवत्व को पा लेता है, फिर वह किसी एक पराधि का, किसी एक उपाधि का, किसी एक समाज और सम्प्रदाय का नहीं बल्कि वह सम्पूर्ण सृष्टि का हो जाता है । मनुष्य तो मनुष्य, पशु और पक्षी भी उस पर अपना अधिकार मानते हैं। आज यही कारण है कि "पूज्याश्री" भारत के भूमण्डल की होकर रह गई हैं। प्रापका विहार क्षेत्र अति विस्तृत रहा है।
जिस प्रोर भी आपके चरण-कमलों ने धरती माता को छुया, माटी धन्य हो गई, धरा प्रफुल्लित हो उठी कि मेरी ही तरह सहनशीलता, क्षमा की प्रतिमूर्ति मेरी बेटी धर्म • के चारप्र में अपने आपको समर्पित कर विश्व-वन्दनीय महावीर की वाणी के प्रचार-प्रसार में जुटी हुई है।
-अभयकुमार सुराणा, जावरा प्रथम खण्ड / ४३
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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