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श्रीवीतरागाय नमः । श्रीसोमसेनभट्टारक-विरचित त्रैवर्णिकाचार ।
पहला अध्याय ।
मङ्गलाचरण । श्रीचन्द्रप्रभदेवदेवचरणौ नत्वा सदा पावनौ, ___संसारार्णवतारको शिवकरौ धर्मार्थकामप्रदौ । वर्णाचारविकासकं वसुकरं वक्ष्ये सुशास्त्रं परं,
यच्छ्रुत्वा सुचरान्त भव्यमनुजाः स्वर्गादिसौख्यार्थिनः ॥१॥
जो धर्म, अर्थ और काम इन तीन पुरुषार्थों की प्राप्तिके कारण हैं, सुख देनेवाले हैं और भव्यपुरुषोंको संसार-समुद्रसे तारनेवाले हैं उन श्रीचन्द्रप्रभदेवके कान्तिमान् पवित्र चरणोंको नमस्कार कर त्रिवर्णाचार नामके परम पवित्र शास्त्रको कहूँगा । यह शास्त्र पुण्यका करनेवाला है और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इन तीनों वर्गों के नित्य-नैमित्तिक आचरणोंको प्रकट करनेवाला है । जिसे सुनकर स्वर्गादि सुखोंको चाहनेवाले भव्य पुरुष उत्तम मार्गमें लगेंगे ॥१॥
या श्रीमद्धरिवंशवंशजलजाल्हादैकसूर्योपमो,
ये के धर्मपरायणा गुणयुतास्तेषां सदा स्वाश्रयः। . ज्ञानध्यानविकासको मुनिजनैः सेव्यो मुदा धार्मिकैः,
स श्रीमान्मुनिसुव्रतो जिनपतिर्दद्यान्मनोवाञ्छितम् ॥ २॥ .