Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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विषय गाथा
विषय
गाथा जम्बूद्वीपके वर्णनमें सोलह अंतराधि
धनुषाकार क्षेत्रमें जीवाप्रमाणके निकाकारोंका निर्देश
१२ ___ लनेका विधान जम्बूद्वीपकी जगतीका उत्सेधादि ।
धनुषके प्रमाणके निकालनेका विधान १८१ जम्बूद्वीपजगतीके ऊपर स्थित वेदि
बाणप्रमाणके निकालनेका विधान । काका विस्तारादि
विजयार्धकी दक्षिणजीवाका प्रमाण वेदीके दोनों पार्श्वभागोंमें स्थित वन- दक्षिणजीवाके धनुषका प्रमाण । १८५ __ वापियोंका विस्तारादि
२२ विजयार्धकी उत्तरजीवाका प्रमाण १८५ बनोंमें स्थित व्यन्तरनगरोंका निरूपण २५ उत्तरजीवाके धनुषका प्रमाण १८६ जम्बूद्वीपके विजयादिक चार द्वारोंका
चूलिकाप्रमाणके निकालनेका विधान २८७ निरूपण
४१ विजयार्धकी चूलिकाका प्रमाण १८८ द्वारोपरिस्थ प्रासादोका निरूपण ४५ पार्श्वभुजाके प्रमाणके निकालने का गोपुरद्वारस्थ जिनप्रतिमाओंका निरूपण ४९ विधान जम्बूद्वीपकी परिधिका प्रमाण
विजयार्धकी पार्श्वभुजाका प्रमाण जम्बूद्वीपके क्षेत्रफलका प्रमाण ५८ भरतक्षेत्रकी उत्तर जीवाका प्रमाण विजयादिक द्वारोंका अन्तरप्रमाण
भरतक्षेत्रके धनुषका प्रमाण मतान्तर से विजयादिक द्वारों का विस्तार भरतक्षेत्रकी चलिकाका प्रमाण १९३ व उत्सेध
, पार्श्वभुजाका ,, मतान्तरसे द्वारोपरिस्थ पुरोका विस्तार हिमवान्पर्वतस्थ पद्मद्रहका विस्तारादिक १९५ व उत्सेध
७४ गंगानदीका वर्णन द्वारोंके अधिपति देवोंका निरूपण
सिन्धुनीका वर्णन
२५२ विजयादिक देवोंके पुगेका वर्णन
भरतक्षेत्रके छह खण्ड
२६६ जगतीके अभ्यन्तरभागस्थ वन
उत्तरभरतके मध्यम म्लेच्छखण्डमें स्थित ___ खण्डों का वर्णन
वृषभगिरिका निरूपण
२६८ जम्बूद्वीपस्थ सात क्षेत्रोंका निरूपण
कालका स्वरूप व उसके भेद २७७ , कुलाचलोंका निरूपण
कालके वर्णनमें संख्यात, असंख्यात भरतादिक क्षेत्र व हिमवान् आदि
और अनन्तके भेद-प्रभेद व उनका कुलाचौंका विस्तार
१०० स्वरूप भरतक्षेत्रस्थ विजयार्द्ध पर्वत और उसके अवसर्पिणी और उत्सापणी कालोंका ऊपर स्थित विद्याधर श्रेण्यादिकाका
स्वरूप व उनका प्रमाण ३१३ निरूपण
अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी कालके दक्षिण और उत्तरभरतका विस्तार १७८ । छह भेद व उनका प्रमाण
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