________________
अन्वयार्थ-(सयल-रज्जरमा-परिचागिदो) सकल राज्यलक्ष्मी का त्याग करके, (वदरमा-सिदवंत-पहावयो) व्रतरूपी लक्ष्मी का आश्रय लेकर प्रभावक, (सयलसाधु-जणेहि य पूजिदो) सकल साधुजनों से पूजित (चंद जिणेस-महेसरो) चन्द्रजिनेश महेश्वर (जयदु) जयवंत हों।
__ अर्थ-सकल राज्यलक्ष्मी का त्याग करके, व्रतरूपी लक्ष्मी का आश्रय लेकर प्रभावक सकल साधुजनों से पूजित चन्द्रजिनेश जयवंत हों।
दुरिद-दाव घणाघणतुल्लयं। गरुडतुल्ल-महाविस-हारयं॥ धवलगत्त-सुधांसुव-उज्जलं।
जयदु चंद जिणेस महेसरो॥4॥ अन्वयार्थ-(दुरिद-दाव घणाघणतुल्लय) पापरूपी आग के लिए सघन मेघ के समान, (गरुडतुल्ल-महाविस-हारयं) मोहरूपी महाविष का हरण करने के लिए गरुड़ के समान, (धवलगत्त-सुधांसुव-उज्जलं) जिनका धवलदेह चन्द्रमा के समान उज्ज्वल है वे (चंद जिणेस-महेसरो) चन्द्रजिनेश महेश्वर (जयदु) जयवंत हों।
अर्थ-पापरूपी आग के लिए सघन मेघ के समान, मोहरूपी महाविष का हरण करने के लिए गरुड़ के समान, जिनका धवलदेह चन्द्रमा के समान उज्ज्वल है वे चन्द्र जिनेश जयवंत हों।
सुचि-वचोरस-सुप्पडिबोहिदा। सयल-भव्व-समूह-समाहिदा॥ विदलिदाखिल-कम्मकलेवरो।
जयदु चंद जिणेस-महेसरो॥5॥ अन्वयार्थ-(सुचि-वचोरस-सुप्पडिबोहिदा) जिनके वचनरूपी रस से अच्छी तरह प्रतिबोधित होकर, (सयल-भव्व-समूह-समाहिदा) सकल भव्य जीवों का समूह समाधान को प्राप्त हुआ, (विदलिदाखिल-कम्मकलेवरो) जिनने कर्मरूपी कलेवर को धो डाला है, (चंद जिणेस-महेसरो) ऐसे चन्द्रजिनेश महेश्वर (जयदु) जयवंत हों।
अर्थ-जिनके वचनरूपी रस से अच्छी तरह प्रतिबोधित होकर, सकल भव्य जीवों का समूह समाधान को प्राप्त हुआ। जिनने कर्मरूपी कलेवर को धो डाला है, ऐसे चन्द्रजिनेश महेश्वर जयवंत हों।
चंदजिणेस-त्थुदी :: 39