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माह-दी
(नेमिनाथ स्तुति, वसंततिलका छन्द)
मादा सिवाय जागो हु समुद्दराया, सोरीपुरम्म सुरपूजिद - जम्मजादो ॥ धण्णा धरा य जदुवंस य सूरसेणं, वंदामि मुत्तिप-णायग - णेमिणाहं ॥1 ॥
अन्वयार्थ - (मादा सिवा य जणगो हु समुद्दराया) जिनकी माता शिवादेवी व पिता राजा समुद्रविजय हैं, (सोरीपुरम्मिं सुरपूजिद - जम्मजादो) शौरीपुर में जिनका सुरपूजित जन्म हुआ है । ( धण्णा धरा य जदुवंस य सूरसेणं) जिनके जन्म से धरती यदुवंश व शूरसेन देश धन्य हो गया, (वंदामि मुत्तिपह - णायग - णेमिणाहं ) उन मुक्तिपथ के नायक नेमिनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ ।
अर्थ - जिनकी माता शिवादेवी व पिता राजा समुद्रविजय हैं, शौरीपुर में जिनका सुरपूजित जन्म हुआ है। जिनके जन्म से धरती, यदुवंश व शूरसेन देश धन्य हो गया, उन मुक्तिपथ के नायक नेमिनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ ।
राजीमदी सयल - बंधव - संपदं च । चत्ता गदो विरदि भूसिद ! उज्जयंते ॥ कंदप्पभूमिरुह - भंजण-मत्तणागं । वंदामि मुत्ति - णायग - णेमिणाहं ॥2 ॥
अन्वयार्ध - (विरदि भूसिद ! ) विरक्ति से भूषित प्रभु (राजीमदी सयल - बंधव-संपदं च) राजीमती, सकल बांधव व संपदा को छोड़कर (उज्जयंते ) ऊर्जयन्त पर (गदो) चले गए, (उन) (कंदप्पभूमिरुह - भंजण - मत्तणागं ) कंदर्परूपी वृक्ष का भंजन करने में मत्त हाथी के समान (मुत्तिपह - णायग - णेमिणाहं ) मुक्तिपथ के नायक नेमिनाथ भगवान को (वंदामि) मैं वंदन करता हूँ ।
अर्थ - विरक्ति से भूषित प्रभु राजीमती, सकल बांधव व संपदा को छोड़कर ऊर्जयन्त पर चले गए। उन कंदर्परूपी वृक्ष का भंजन करने में मत्त हाथी के समान मुक्तिपथ के नायक नेमिनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ ।
मिणाह - त्थुदी :: 45