Book Title: Sunil Prakrit Samagra
Author(s): Udaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 410
________________ अर्थ-सर्व कल्याण कारक श्रेष्ठ बारहभावना को जो पढ़ता है और चिंतन करता है, वह शाश्वत सुख को पाता है। । आयरियसुणीलसागर किदा बारह भावणा समत्ता। । आचार्य सुनीलसागरकृत बारहभावना समाप्त हुई। ॐ समत्तो सुणील-पागिद-समग्गो. भगवान महावीर स्वामी की श्रमण परंपरा के महान संत बीसवीं सदी के ज्येष्ठ आचार्य आदिसागर (अंकलीकर) के पट्टाधीश आचार्य महावीरकीर्ति के पट्टाधीश आचार्य सन्मतिसागर के पट्टशिष्य आचार्य सुनीलसागर द्वारा रचित प्राकृत ग्रन्थों का संग्रह 'सुनील-प्राकृतसमग्र' सामाप्त हुआ। DOO 408 :: सुनील प्राकृत समग्र

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