________________
अन्वयार्थ-यदि लोग (विरोधे वि विणोदप्पा) विरोध में भी विनोदी (सग्गुणे पमोदप्पा) सद्गुणों में प्रमोदी (य) और (कोहे वि णिरोहप्पा) क्रोध में भी निरोधी बने रहे तो (संती फुरदि सव्वदो) सब तरफ शांति फैल जाती है।
भावार्थ-यदि हम विरोध में भी विनोदी रहे, सद्गुणों में प्रमोदी और क्रोध के अवसर पर भी शांत बने रहे तो सब तरफ शांति फैल जाती है।
धर्म का आचरण करो णरसत्ती समाजो हि, सो णरो जो य सग्गुणी।
सग्गुणी खलु धम्मप्पा, तम्हा तेसिं हि आयर॥8॥ अन्वयार्थ-(णर सत्ती समाजो ही) मनुष्य शक्ति समाज है (य) और (सो णरो जो य सग्गुणी) मनुष्य वह है जो सद्गुणी है (सग्गुणी खलु धम्मप्पा) जो सद्गुणी है वही धर्मात्मा है, (तम्हा) इसलिए (तेसिं हि आयर) उसका ही आचरण करो।
भावार्थ-मनुष्य शक्ति से समाज बनता है। मनुष्य वह है जो सद्गुणी है। और सद्गुणी ही धर्मात्मा है इसलिए सद्गुणों का आचरण करो।
ज्ञान से सब कुछ णाणेण अंतरं सुद्धं, णाणेण कजकोसलं।
णाणेण जीवणं रम्मं, णाणेण संतिणिम्मला॥9॥ अन्वयार्थ-(णाणेण अंतरं सुद्धं) ज्ञान से अंतरंग शुद्धि होती है, (णाणेण कन्जकोसलं) ज्ञान से ही कार्यकुशलता होती है, (णाणेण जीवणं रम्म) ज्ञान से जीवन रमणीय बनता है, (णाणेण संतिणिम्मला) ज्ञान से निर्मल शान्ति होती है।
भावार्थ-ज्ञान से अंतरंग शुद्धि होती है। ज्ञान से कार्य कुशलता आती है। ज्ञान से जीवन रमणीय-सुंदर बनता है और ज्ञान से ही निर्मल शान्ति की प्राप्ति होती है।
शान्ति का क्रम पढमो अप्पसंती त्ति, परसंती दुतीयगो।
तदियो लोगसंती त्ति, संती पाढक्कमो इमो0॥ अन्वयार्थ-(पढमो अप्पसंती त्ति) प्रथम आत्मशान्ति होनी चाहिए (परसंती दुतीयगो) दूसरे क्रम पर दूसरों की शान्ति (तदियो लोगसंती त्ति) तीसरी लोकशान्ति (संती पाढक्कमो इमो) यह शान्ति का पाठ क्रम है।
भावार्थ-सबसे पहले आत्मशान्ति अर्थात् आत्मसन्तोष होना चाहिए। फिर दूसरे क्रम पर दूसरों की शान्ति फिर तीसरे क्रम पर विश्वशांति। यह शांति का पाठक्रम है।
वयणसारो :: 337