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आचार सर्वोपकारी है आयारो सव्वभोमो य, पुज्जो य सव्वकालिगो।
भूदाणं तु उवयारी, मोक्खस्स कारणं हवे ॥39॥ अन्वयार्थ-(आयारो) आचार (सव्वभोमो) सार्वभौम (पुजो) पूज्य (सव्वकालिगो) सार्वकालिक (य) और (भूदाणं तु उवयारी) जीवमात्र का उपकारी (य) तथा (मोक्खस्स कारणं हवे) मोक्ष का कारण है।
भावार्थ-श्रेष्ठ सदाचार सार्वभौम, पूज्य, सार्वकालिक और जीवमात्र का उपकारी तथा मोक्ष का कारण है। इसलिए श्रेष्ठ आचरण करना चाहिए।
सद्भावना श्रेष्ठ है णिक्काम भावदो धम्मो, कजं णिण्णाम भावदो।
णिम्माण भावदो दाणं, उवयारो य सेट्ठगो॥4॥ अन्वयार्थ-(णिक्काम भावदो धम्मो) निष्काम भाव से धर्म (णिण्णाम भावदो कजं) निर्नामभाव से कार्य (णिम्माण भावदो दाणं उवयारो य सेट्ठगो) निर्मान भाव से दान व उपकार श्रेष्ठ है।
भावार्थ-निष्काम भाव से धर्म, निर्नाम भाव से कार्य और निर्मान भाव से दान व उपकार करना श्रेष्ठ है।
सच्चा सुख आत्मस्थित है छुदं सुहं पराघादं, तुच्छं सुहं परासिदं।
मणोसुहं सुचिंतादो, अप्पासिदं परं सुही॥1॥ अन्वयार्थ-(पराघादं) परघात (छुद्द सुखं) क्षुद्र सुख है, (परासिदं) पराश्रित (तुच्छं सुहं) तुच्छ सुख है, (सुचिंतादो) श्रेष्ठचिंतन से (मणोसुहं) मनसुख होता है, (अप्पासिदं परं सुही) आत्माश्रित परं सुख होता है।
भावार्थ-जो परघात से प्राप्त हो वह क्षुद्र सुख है, जो पराश्रय से प्राप्त हो वह तुच्छ सुख है, जो श्रेष्ठ चिंतन से प्राप्त हो वह मनसुख है, लेकिन जो आत्माश्रित हो वह परमसुख है।
वह वांछित फल नहीं पाता धम्मिगो णीदिगो णत्थि, परेक्खी णप्पदंसगो।
संतीच्छुगो समी णत्थि, सो किं पावेइ वंछिदं? ॥2॥ अन्वयार्थ-(धम्मिगो णीदिगो णत्थि) धार्मिक यदि नैतिक नहीं है। (परेक्खी णप्पदंसगो) दूसरों को देखता है पर अपने को नहीं (संतीच्छुगो समी णत्थि) शांति 346 :: सुनील प्राकृत समग्र