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अन्वयार्थ-(अणेगंती) अनेकांती (महाणाणी) महाज्ञानी (सियावायि) स्याद्वादी (सुभासणिं) सुभाषणी (आगमणेत्त-सुजुत्तं) आगमनेत्र संयुक्त (सम्मदिसायरं) सन्मति-सागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
__ अर्थ-अनेकांती, महाज्ञानी, स्याद्वादी, सुभाषणी, आगमनेत्र संयुक्त श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
तिसंझे-साहणामग्गे, विहिदाचार-चारिणं।
समदा-णायगं सम्मं, वंदे सम्मदिसायरं ॥71॥ अन्वयार्थ (तिसंझे-साहणामग्गे विहिदाचार-चारिणं) तीनों संध्याओं में साधना में आगमानुसार चलनेवाले (सम्मं समदा णायगं) सम्यक् समता के नायक (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-तीनों संध्याओं में साधना में आगमानुसार चलनेवाले, सम्यक् समता के नायक श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
सज्झायेसु सदालीणं, सत्थोवदेसदेसिणं।
अभिक्खणाणिणं सुद्धं, वंदे सम्मदिसायरं ।।72॥ अन्वयार्थ-(सज्झायेसु सदालीणं) स्वाध्याय में सदालीन (सत्थोवदेसदेसिणं) शास्त्रोपदेश देनेवाले, (अभिक्खणाणिणं) अभीक्ष्णज्ञानी (सुद्ध) शुद्ध (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ। ____ अर्थ-स्वाध्याय में सदालीन, शास्त्रोपदेश देनेवाले, अभीक्ष्णज्ञानी श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
दसण-णाण-चारित्तं, तवं वीरिय-संजुदं।
पंचायारादि-संजुत्तं, वंदे सम्मदिसायरं ।।73॥ अन्वयार्थ (दंसणं णाण चारित्तं तवं वीरियसंजुदं) दर्शन ज्ञान चारित्र तप व वीर्याचार सहित (पंचायारादि-संजुत्तं) पंचविध आचार संयुक्त (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ। ___अर्थ-दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप व वीर्याचार सहित पंचाचार संयुक्त श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
कसाय-वासणातीदं, जीवाणं तावहारिणं।
संतं तवस्सिणं सोम्म, वंदे सम्मदिसायरं ।।74॥ अन्वयार्थ-(कसाय-वासणातीदं) कषाय वासनातीत (जीवाणं तावहारिणं) जीवों का ताप हरने वाले (संतं तवस्सिणं) शांत तपस्वी (सोम्म) सौम्य (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
सम्मदि-सदी :: 371