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__ अर्थ-सुधीर, सत्यरूप, ज्ञानामृत बरसानेवाले, संतोषपूर्ण चित्तवाले सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
वयोवुड्ढं तवोवुड्ढ, णाणवुड्ढं मणोजयिं।
तहा अणुभवं वुड्ढं, वंदे सम्मदिसायरं ॥2॥ अन्वयार्थ-(वयोवुड्ढे) वयोवृद्ध, (तवोवुड्ढे) तपोवृद्ध, (णाणवुड्ढे) ज्ञानवृद्ध, (मणोजयिं) मनोजयी (तहा) तथा (अणुभवंवुड्ढे) अनुभववृद्ध (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-वयोवृद्ध, तपोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, मनोजयी तथा अनुभव वृद्ध श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
णेगभासा-कलाविण्णं, तच्चविण्णाणभूसणं।
धम्मसंसाहणं वीरं, वंदे सम्मदिसायरं ॥63॥ अन्वयार्थ-(णेगभासा कलाविण्णं) अनेकभाषा व कलाविज्ञ (तच्चविण्णाणभूसणं) तत्त्वविज्ञानभूषण, (धम्मसंसाहणं वीरं) धर्म संसाधन में वीर (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ- अनेकभाषाविज्ञ व कलाविज्ञ, तत्त्वविज्ञान-भूषण, धर्म संसाधन में वीर श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
सत्थेसु वायणे पण्णं, पडिहावित्त-धारिणं।
मुणीहिं वंदिदं सेठें, वंदे सम्मदिसायरं ।।64॥ अन्वयार्थ (सत्थेस वायणे पण्णं) शास्त्रों के वाचन में प्रज्ञ (पडिहावित्तधारिणं) प्रतिभारूपी धन के धारी (मुणीहिं वंदिदं) मुनियों से वंदित (सेठं) श्रेष्ठ (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-शास्त्रों के वाचन में प्रज्ञ, प्रतिभारूपी धन के धारी, मुनियों से वंदित श्रेष्ठ श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
दीणबंधुं दयागारं, ववहारे वियक्खणं।
दिगंबरं मणिं रम्मं, वंदे सम्मदिसायरं ॥65॥ अन्वयार्थ-(दीणबंधुं दयागारं) दीनबंधु दया के भंडार (ववहारे वियक्खणं) व्यवहार में विचक्षण (दिगंबरं मणिं रम्म) रमणीय दिगम्बर मणि (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-दीनबंधु दया के भंडार, व्यवहार में विचक्षण, रमणीय दिगम्बर मणि श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
सम्मदि-सदी :: 369