________________
तस्स अणंतरं पंचसुदकेवलिणो जादा।तं जहा-विण्हूणंदी, गंदीमित्तो अवराजिदो, गोव-ड्ढणो, भद्दबाहुसामी य।
सिरी भदबाहु-सामी अंतिमो सुदकेवली आसी।तं अणंतरं केवि संपुण्णसुदण्हू सुदकेवलीण जादो। तस्स भद्दबाहूसामिस्स चरियं संखेवेण भव्वजीवाण कल्लाणहेतुं वोच्छामि
जम्मं : अस्सिं जंबूदीवस्स भरहखेत्ते कोडिणयर-णाम णयरं अत्थि। तत्थ सूर-वीर-साहससंपण्णो राया पोम्मधरो रूप-सोहग्ग-कला-लावण्ण-संपुण्णाए भारियाए पोम्मसिरीए सह रजं करी। तस्स रज्जम्मि सुधम्म-परायणो सोमसम्मा णामं पुरोहिदो वि सगेहिणी सुलक्खणा-पइव्वदाए सोमसिरीए सह णिवसी। ___ भगवान वर्धमान-जिनेश्वर महावीर अंतिम तीर्थंकर हुए हैं। उनके बाद कोई भी तीर्थंकर नहीं हुए, किन्तु उनकी शिष्य परम्परा में तीन अनुबद्ध केवली हुए। वह इस प्रकार हैं-श्री इन्द्रभूति गौतम, सुधर्माचार्य और जंबूस्वामी। उसके बाद पाँच श्रुतकेवली हुए। वह इस प्रकार हैं-विष्णुनंदी, नंदीमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु स्वामी।
श्री भद्रबाहु स्वामी अंतिम श्रुतकेवली थे। उनके बाद कोई भी संपूर्ण श्रुत के ज्ञाता केवली नहीं हुए। उन भद्रबाहु स्वामी के चरित को संक्षेप में भव्यजीवों के कल्याण हेतु मैं कहता हूँ
जन्म : इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कोटिनगर नाम का नगर हैं। वहाँ पर शूर-वीर-साहस आदि गुणों से सम्पन्न राजा पद्मधर (पद्मरथ) रूप-सौभाग्य, कलासौन्दर्य से परिपूर्ण धर्मपत्नी पद्मश्री के साथ राज्य करता था। उस राज्य में सम्यक् धर्मपरायण सोमशर्मा नाम का पुरोहित भी अपनी गृहिणी सुलक्षणा-पतिव्रता सोमश्री के साथ निवास करता था।
एगाए रत्तीए सोमसिरीए सुसिविणाणि दिट्ठाणि। पहाए णिय-सामीसोमसम्माणं सा सिविणफलं पुच्छइ। सिविणसत्थाणुसारं सोमसम्मो सिविणस्स फलं वच्चइ। तं सोच्चा सोमसिरी अच्चंत-संतुट्ठा जादा। गब्भकालं बोलिऊण सा सुहतिहिणक्खत्त-मुहत्ते एगं सुंदरं बालगंजणयदि।सुरूव-सुलक्खण-बालगं पाऊण पुरोहिद-दंपदी अदिसंतुट्ठो जादो। इंदतुल्ल-सुरूवं, चेटुं, बालकीडंच दट्ठण परिजणेहिं तस्स बालगस्सणामं भद्दबाहुत्ति ठविदं। तस्स जादि-महुच्छवं, जिणदंसण-महुच्छवं च अदि-उच्छाहेण संपण्णं किदं। इमम्मि अवसरम्मि सेट्ठजणेहिं विसिट्ठ-जिणाराहणा, जिणसत्थकहिद-सुदाणस्स सत्तखेत्तम्मि य दीण-दलिद्देसु सुवण्ण-वत्थादि दाणं कदं।
बालत्तणं : बीया-तिहीए चंदोव्व वड्ढंतो सो बालो सव्व-पियजणाणं चित्तं पफुल्लं करेइ। गुरुजणाणं, अज्झावयवग्गाणं पि सो आणंदस्स कारणं
382 :: सुनील प्राकृत समग्र