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भत्तीए जिणवराणं, खीयदि जं पुव्वसंचिदं कम्म।
आइरिय-पसाएण य, विजा मंता य सिझंति ॥571॥ सयलसत्थाणि अज्झेदूण आइरियेण उत्तं- भो वच्छ! अज्झयणं पुण्णं जादं, अदो गेहं गच्छ।
सखेदेणं भद्दबाहु भणदि- तव जुअलचरणं चत्ता, णाहं गंतुमिच्छामि। भयवं! दिक्खं देउ।
आइरियो कधेदि-पढमं पिऊणं समीवे गच्छ।
भद्दबाहू उच्चदि-भयवं! तव पसादेण अहं सम्मं णाणी जादो। अदो अहं गेहं गंतुं णेच्छामि। असारे संसारे का कस्स मादा? को कस्स पिदा? को कस्स कुडुंबो बंधुवग्गो वा।
वच्छल्लभावेण आइरियो पुणो तस्स कधेदि-वच्छ! जिणपरंपराणुसारं तुमए घरं गंतव्वं । आणं च गहिऊण आगंतव्वं।
विणएण भद्दबाहु भणदि-भयवं! तव जारिसी आणा...।
भद्रबाहु के साथ जाते हुए गोवर्धनाचार्य ससंघ उसके घर पहुँचे। मुनिसंघ को देखकर सोमशर्मा अपने परिजनों के साथ विनय-उपचार करके पूछता है- अहो महात्मा! किस कारण से आपने हमारे द्वार को पवित्र किया?
__ आचार्य कहते हैं-तुम्हारा यह बालक हमें यहाँ लाया है। मैं इसको शास्त्रों का अध्ययन कराना चाहता हूँ। इसके कल्याण के लिए इसे शीघ्र ही शिक्षा दिलाना चाहिए। मैं इसको पढ़ाऊँगा, अतः आप लोग स्वीकृति दीजिए।
कुछ चिंतन करके उसके माता-पिता ने सहमति प्रदान की।
उसके बाद भद्रबाहु को अपने संरक्षण में लेकर आचारांगादि बारह अंग से परिपूर्ण, महामहिम, छत्तीस गुणों से सम्पन्न, भव्यजीवों के हितकारी मुनिनायक श्री गोवर्धनाचार्य ससंघ वहाँ से निकल गये।
शिक्षा : व्यवहारपटु, विलक्षणबुद्धि सम्पन्न वह कुमार भद्रबाहु आचार्य के प्रसाद से अल्पकाल में ही शास्त्र, पुराण, सिद्धान्त, काव्य, आचार शास्त्रों में पारंगत हो गया। सच है, श्रेष्ठ गुरु की कृपा से शिष्य शीघ्र ही शास्त्र पारंगत हो जाते हैं। मूलाचार में कहा हैं___गाथार्थ- जिनवर की भक्ति से पूर्व संचित कर्मों का नाश होता है और आचार्य की कृपा से विद्या व मंत्रों की सिद्धि होती है ॥571 ।
सम्पूर्ण शास्त्रों का अध्ययन कराकर आचार्य ने कहा-हे वत्स! अध्ययन पूर्ण हो गया, अब घर जाओ।
खेदपूर्वक भद्रबाहु कहते हैं-आपके युगल-चरणों को छोड़कर मैं जाने की इच्छा नहीं करता। भगवन्! दीक्षा दीजिए।
भद्दबाहु-चरियं :: 385