Book Title: Sunil Prakrit Samagra
Author(s): Udaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 391
________________ 4. बारह फण युक्त सर्प को देखने से बारह वर्ष का दुर्भिक्ष होगा। 5. देव के विमान को उल्टा जाता हुआ देखने से पंचमकाल में देवता, चारण ऋद्धि-मुनि और विद्याधर इस पृथ्वी पर नहीं आयेंगे। 6. दूषित स्थान पर विकसित कमल देखने से श्रेष्ठ-कुलीन प्रबुद्ध लोग भी कुधर्म ___की सेवा करेंगे। 7. भूतपिशाच का नृत्य देखने से कलिकाल (कलयुग) में मनुष्य बहुलता से कुदेवों (अस्त्र-शस्त्रधारी देवों) में श्रद्धा करेंगे। 8. खद्योत (जुगनूं) का उद्योत देखने से जिनधर्म आराधक थोड़े, किन्तु कुधर्म आराधक बहुत होंगे। 9. कहीं सूखे, कहीं थोड़ा जल भरे सरोवर को देखने से तीर्थक्षेत्रों पर धर्म नहीं होगा या थोड़ा होगा। 10. स्वर्ण पात्र में कुत्ते को खीर खाते हुए देखने से पाखंडी और नीचपुरुष लक्ष्मी का उपभोग करेंगे। 11. गजराज (हाथी) पर बैठे हुए बन्दर को देखने से नीच पुरुष राज्य करेंगे। 12. सागर के द्वारा सीमा का उल्लंघन देखने से शासन और शासन अधिकारी स्वच्छंद होंगे। 13. युगल बछड़ों (बैलों) द्वारा रथ-संचालन देखने से लोग युवावस्था में संयम ग्रहण करेंगे। वृद्धावस्था में समर्थ नहीं होंगे। 14. ऊँट पर चढ़े हुए राजपुत्र को देखने से राजा अमार्गी, निश्शील, धर्मरहित होंगे। 15. धूल से अभिभूत (धूलसहित) रतनराशि को देखने से निर्ग्रन्थ मुनि परस्पर वात्सल्य हीन होंगे। 16. कृष्ण (काले) हाथियों का युद्ध देखने से कलिकाल (कलियुग) में यथायोग्य मेघ नहीं बरसेंगे। अपने सोलह स्वप्नों का फल सुनकर राजा (चन्द्रगुप्त) संसार, शरीर और भोगों से अत्यधिक विरक्त हुए। अपने पुत्र बिंदुसार के लिए राज्य-सिंहासन देकर उन्होंने श्री भद्रबाहु स्वामी से संसार के भय को मथने वाली, अपूर्व शांतिदायिनी, एकान्त विरतिरूपा जिनदीक्षा प्राप्त की। उत्तरावहे दुब्भिक्खो : एगदा सिरीभद्दबाहुसामी आहारत्थं कस्सइ सावगस्स गिह-अंगणं पविट्ठो। तत्थ डोलाए डोलमाणो अच्चंत-लहुसिसू अकम्हा '... गच्छ, गच्छ, 'त्ति भासंतो दिट्ठो। तदा णिमित्तणाणी आयरिओ किंचि चिंतिऊण पुणो पुच्छदि-कियंत कालपज्जंतं, सिसुणा उत्तं-बारस-वरिस-पजंतं, बारसवरिसपजंतं। भद्दबाहु-चरियं :: 389

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