Book Title: Sunil Prakrit Samagra
Author(s): Udaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 385
________________ जादो।खणं पढंतो, खणं कीडतो, खणं हसंतो, खणं अइमणोहरं चेठं कुव्वंतो, खणं गहीररूवं धारंतो सो सव्वणयरजणस्स पिओ जादो। वियक्खणदा : एगदा बालगो भद्दबाहू मित्तेहिं सह विविह-खेलं खेलतो आसी, गेंदुअकीडाए तेण एक्कमेक्कस्स उवरि गेंदुअं ठवेंतं एगारहं गेंदुआणि पइट्ठाविदं दट्ठण सव्वे मित्ता अच्छेरजुत्ता जादा। इमम्मि अवसरे चउत्थो सुदकेवली गोव ड्ढणाइरियो णियमुणिसंघेण सह विहरंतो तत्थ आगदो।बालगस्स कीडाए इमं दिव्वकजं दट्ठण सो वि अच्छेरजुत्तो संजादो। सदिव्व-णिमित्तणाणेण तेण जाणियं इमो बालगो सुद-तव-तेय-सत्त-संपण्णो पंचमो सुदकेवली होहिदि। अणंतरं तं सेट्टुं पणमंतं बालगं ससमीवे बोलाविऊण आयरियो पुच्छदिभो वच्छ! तव णाम किं? सो बालगो उच्चदि-भयवं! ममणाम भद्दबाहूअत्थि।अहं माहणो(बंभणो) म्हि। सावय-चूणामणि-सिरि-सोमसम्मा मम पिदा वच्छल्लपुण्णा य सोमसिरी मम मादा अत्थि। समीवत्थे इमम्मि कोडि-णयरे णिवसामि। ___ बालगस्स पडिह, वयणकलं, विणयवुत्तिं पण्णासीलदं च दठूण आयरियो अच्चंत-पमुदिद-भावेण पुच्छदि-भो पण्ण! अहं तुमं अणेगाणि सेट्ठसत्थाणि सिक्खाहिमि। तुमं सिक्खिस्ससि वा? भद्दबाहू पसण्णचित्तेण सुवीकरोदि। आयरियो पुणो पुच्छदि-वच्छ! संपडि तव मादा-पिदा कत्थ संति? भद्दबाहू-ते घरे संति। भयवं! मम गेहं आगच्छदु। एक रात्रि में सोमश्री ने कुछ स्वप्न देखे। प्रातः अपने स्वामी सोमशर्मा के पास जाकर वह स्वप्नों का फल पूछती है। स्वप्नशास्त्र के आधार से सोमशर्मा स्वप्न का फल कहता है। उनको सुनकर सोमश्री अत्यन्त संतुष्ट हुई। गर्भकाल बिताकर वह शुभतिथि, शुभनक्षत्र व शुभ मुहूर्त में एक सुन्दर बालक को जन्म देती है। सुंदर एवं सुलक्षण संपन्न बालक को पाकर पुरोहित दंपत्ति अत्यधिक संतुष्ट हुए। इन्द्र के समान रूप, चेष्टा और बालक्रीड़ा को देखकर परिजनों के द्वारा उस बालक का नाम भद्रबाहु रखा गया। उसके जाति-महोत्सव और जिनदर्शन महोत्सव अति उत्साहपूर्वक सम्पन्न किये गये। इस अवसर पर बड़े बुजुर्गों ने विशिष्ट जिनाराधना (जिनेन्द्रपूजा), जिनशास्त्रकथित सम्यक्दान के सातक्षेत्रों में और दीन-दरिद्रों में स्वर्ण वस्त्रादि दान किये। __ . बचपन : द्वितीया-तिथि के चन्द्रमा की तरह वह बालक वृद्धिंगत होते हुए सभी प्रियजनों के चित्त को प्रफुल्लित करने लगा। गुरुजनों एवं अध्यापक वर्गों के लिए वह आनंद का कारण हुआ। क्षणभर में पढ़ता, क्षणभर में खेलता, क्षणभर में भद्दबाहु-चरियं :: 383

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