Book Title: Sunil Prakrit Samagra
Author(s): Udaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 360
________________ इटावा नगर, (भिंडे) भिण्ड, (जब्बालिपुर-दूरुगे) जबलपुर दुर्ग (णागपुरे) नागपुर, (दाहोदे) दाहौद, (डूंगरपुर-लोहारिए) डूंगरपुर, लोहारिया (पारसोला पदावे य) पारसोला और प्रतापगढ़ (उदये) उदयपुर (बंसवाड़ए) बांसवाड़ा, (सागवाड़ाए) सागवाड़ा, (इंदोरे) इन्दौर, (रामगंजमंडी सुहे) शुभ रामगंजमंडी, (किसणगडे) किसनगढ़, (कालूए) कालू, (जयपुरे) जयपुर, (दिल्लीए) दिल्ली, (फिरोजाबाद णयरे) फिरोजाबाद नगर, (टीकमगढ़-चंपापुरे) टीकमगढ़, चंपापुर (कासीए) काशीवाराणसी, (छत्तरपुरे) छतरपुर (बडवाणी णरवालिए) बड़वानी, नरवाली, (उदयपुरे) उदयपुर (खम्मेरे) खमेरा, (मुंबईए) मुंबई, (लासुण्णे) लासुर्णे, (सेठे कुंजवणे दोण्हं) श्रेष्ठ कुंजवन में दो (इच्चले) इंचलकरंजी (य) और कोल्हापुर में चातुर्मास संपन्न हुए। अर्थ-प्रथम चातुर्मास मेरठ नगर में दूसरा सम्मेदशिखर के सम्मुख ईसरी बाजार में, तीसरा बाराबंकी में उसके बाद बावनगजा, श्रवणबेलगोला, हुम्मचा, कुंथलगिरी, गजपंथा, मांगीतुंगी, गिरनारजी, मथुरा, सम्मेदशिखर, रांची, कलकत्ता में दो फिर इटावा नगर, भिण्ड, जबलपुर, दुर्ग, नागपुर, दाहोद, डूंगरपुर, लोहारिया, पारसोला और प्रतापगढ़, उदयपुर, बांसवाड़ा, सागवाड़ा, इन्दौर, शुभ रामगंजमंडी, किसनगढ़, कालू, जयपुर, दिल्ली, फिरोजाबाद नगर, टीकमगढ़, चंपापुर, काशीवाराणसी, छतरपुर, बड़वानी, नरवाली, उदयपुर, खमेरा, मुंबई, लासुर्णे, श्रेष्ठ कुंजवन में दो, इंचलकरंजी और कोल्हापुर में चातुर्मास संपन्न हुए। आसणे कायसिद्धी य, मणो सिद्धी य सासणे। वयणं भासणे सिद्धी, वंदे सम्मदिसायरं ॥16॥ अन्वयार्थ-जिन्हें (आसणे कायसिद्धी) आसन में कायसिद्धि (सासणे) शासन में (मणोसिद्धी) मनसिद्धी (य) और (भासणे वयणं सिद्धी) बोलने में वचन सिद्धि रहीं उन (सम्मदिसायरं)) सन्मति को (वंदे) वंदन करता हूँ। ___ अर्थ-जिन्हें आसन में कायसिद्धि, शासन में मनसिद्धि और भाषण में वचनसिद्धि रही उन आचार्यश्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ। अज्झप्पजोग-संपण्णं, सुदसिद्धंत पारगं। इंदियग्गाम-दंतं च, वंदे सम्मदिसायरं ॥18॥ अन्वयार्थ-(अज्झप्पजोग संपण्णं) अध्यात्मयोग संपन्नं, (सुदसिद्धंतपारगं) श्रुत सिद्धांत पारंगत (इंदिग्गाम दंतं च) और इंद्रिय समूह का दमन करने वाले (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ। अर्थ-अध्यात्मयोग संपन्न, श्रुत सिद्धांत पारंगत और इंद्रियसमूह का दमन करने वाले श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ। 358 :: सुनील प्राकृत समग्र

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