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सद्गुणों से महत्त्व प्राप्त होता है ईसरत्ता महत्तं णो, महत्तं णण्ण-सासणा।
पइट्ठादो ण माहप्पं, माहप्पं सग्गुणेहि य॥11॥ अन्वयार्थ-(ईसरत्ता महत्तं णो) ऐश्वर्य से महत्त्व नहीं आता। (महत्तं णण्णसासणा) अन्य पर शासन करने से महत्त्व नहीं प्राप्त होता (य) और (पइट्ठादो ण माहप्पं) प्रतिष्ठा से भी महत्त्व नहीं आता है, (माहप्पं सग्गुणेहि ) सद्गुणों से महत्त्व प्राप्त होता है।
भावार्थ-ऐश्वर्य से मनुष्य का महत्त्व नहीं होता है, अन्य पर शासन करने से महत्त्व प्राप्त नहीं होता और न ही प्रतिष्ठा पा लेने से महत्त्व प्राप्त होता है, महत्त्व प्राप्त होता है सद्गुणों से।
उत्तम पुरुष ऐसा जीवन नहीं चाहते जीवणं णिक्किरियं च, सुविधाजुत्तं च तहा।
परावलंबणं जुत्तं, णेच्छंति पुरिसोत्तमा॥12॥ अन्वयार्थ-(परिसोत्तमा) उत्तम पुरुष (णिक्किरियं) निष्क्रिय (सविधाजत्तं) सुविधायुक्त (तहा) तथा (परावलंबणं) परावलंबन युक्त (जीवणं ) जीवन (णेच्छंति) नहीं चाहते।
भावार्थ-उत्तमपुरुष निष्क्रिय, सुविधायुक्त तथा परावलंबन युक्त जीवन नहीं चाहते।
कुशलव्यक्ति सफल होता है सफलं वस्सिदे काले, अकाले विफलं जहा।
कुसलो खेत्तकालण्हू, सफलो होदि सव्वदा॥13॥ अन्वयार्थ-(जहा) जैसे (वस्सिदे काले) सुयोग्य समय पर बरसने पर मेघ (सफलं) सफल होते हैं। व (अकाले विफलो) अयोग्यकाल में बरसने पर विफल होते हैं वैसे ही (कुसलो खेत्तकालण्हू) कुशल क्षेत्र कालज्ञ व्यक्ति (सव्वदा) हमेशा (सफलं) सफल (होदि) होता है।
भावार्थ-जैसे सुयोग्य समय पर बरसने पर मेघ सफल होते हैं और अयोग्य अकाल में बरसने पर मेघ विफल होते हैं। वैसे ही क्षेत्र काल को अच्छी तरह जानने वाले व्यक्ति हमेशा सफल होते हैं।
वह पुरुष उत्तम है पसण्णो ण पसंसाए, विसण्णो ण विरोधगे।
खिण्णो हवे ण वेफल्ले, सो पुरिसो हि उत्तमो14॥ 338 :: सुनील प्राकृत समग्र