________________
अन्वयार्थ-(पसण्णो ण पसंसाए) जो प्रशंसा में प्रसन्न नहीं होता है (विसण्णो ण विरोधगे) विरोध में जो विषण्ण नहीं होता (तथा खिण्णो हवे ण वेफल्ले) विफलता में खिन्न नहीं होता (सो पुरिसो हि उत्तमो) वह पुरुष ही उत्तम है।
___ भावार्थ-जो प्रशंसा में प्रसन्न नहीं होता, विरोध में विषाद युक्त नहीं होता, विफलता में खिन्न नहीं होता वह पुरुष श्रेष्ठ पुरुष है।
युग नहीं भाव बदलो कलिजुगो कलुस्सेहि, सच्छभावेहि सज्जुगो।
णवजुगो णवीणेहि भावेहि वट्टदे जुगो॥15॥ अन्वयार्थ-(कलिजुगो कलुस्सेहि) कलुष भावों से कलियुग (सच्छभावेहि सज्जुगो) स्वच्छ भावों से सतयुग और (णवीणेहि णवजुगो) नये भावों से नवयुग है वस्तुतः (भावेहि वट्टदे जुगो) भावों से युग वर्तता है।
भावार्थ-कलुषभावों से कलियुग बनता है। स्वच्छ भावों से सतयुग बनता है और नये भावों से नवयुग समझना चाहिए। वस्तुत: अपने भावों पर ही कलयुग सतयुग या नवयुग निर्भर करता है।
ज्ञानियों का चिन्तन संजमं अप्पसेयत्थं, परत्थं च परक्कमं।
सव्वस्स सेयचिंताउ, णाणी करोदि सव्वदा॥16॥ अन्वयार्थ-(णाणी) ज्ञानी (सव्वदा) हमेशा (अप्पसेयत्थं संजमं) आत्मकल्याण के लिए संयम (परत्थं च परक्कम) परोपकार के लिए पराक्रम (च) और (सव्वस्स सेय चिंताउ) सबके कल्याण हेतु चिंतन करता है।
भावार्थ-ज्ञानी धर्मात्मा पुरुष हमेशा आत्मकल्याण के लिए संयम धारण करता है और परोपकार के लिए पराक्रम का सहारा लेता है और सबका कल्याण हो ऐसा चिंतन करता है।
चारित्र से आदर्श आयरिसो चरित्तादो, णिक्कस्सो गुज्झ-चिंतणा।
संघस्सो वि णवल्लादो, आसि अत्थि य होहिदि॥17॥ अन्वयार्थ-(चरित्तादो आयरिसो) चारित्र से आदर्श (गुज्झ-चिंतणा) गम्भीर चिन्तन करने पर (णिक्कस्सो) निष्कर्ष,(णवल्लादो) नये प्रस्तुतिकरण में (संघस्सो) संघर्ष (आसि अत्थि य होहिदि) होता था, होता है और होता रहेगा।
भावार्थ-चारित्र से आदर्श बनता है, चिन्तन करने पर निष्कर्ष निकलता है और किसी भी नयी शुरुआत में संघर्ष होता ही है, होता था और होता रहेगा।
वयणसारो :: 339