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दया बिना मनुष्य कैसा बाल-बुड्ढेसु हीणेसु, इत्थीजणे य दुब्बले।
बाहिजुत्तेसु मूढेसु, जेसिं दया ण ते पसू॥12॥ अन्वयार्थ-(बाल-बुड्ढेसु) बालकों में, वृद्धों में (हीणेसु) हीन अंग धारियों में (इत्थीजणे) स्त्रीजनों में (दुब्बले) दुर्बल में (बाहिजुत्तेसु) व्याधियुक्तजनों में (य) और (मूढेसु) मूों में (जेसिं) जिनकी (दया ण) दया नहीं है (ते) वे (पसू) पशु हैं।
भावार्थ-बालकों पर, वृद्धजनों पर, लंगड़े-लूले-अंधे-बहरे मनुष्यों पर, महिलाओं पर, दुर्बल अर्थात् कमजोर मनुष्यों पर, पशुओं पर, विभिन्न रोगों से ग्रस्त दुःखी जनों पर और मूर्ख अर्थात् मानसिक बीमारी से युक्त मंदबुद्धिजनों पर जिनके मन में दया नहीं उमड़ती वे मनुष्य देहधारी होकर भी पशु हैं।
ऐसे वचन मत बोलो असच्चं अहिदं गव्वं, कक्कसं मम्मभेदगं।
जिणसत्थ-विरुद्धं च, णो भणेञ्ज बुहो वयं ॥13॥ अन्वयार्थ-(असच्चं) असत्य (अहिदं) अहितकर (गव्वं) गर्वयुक्त (कक्कसं) कर्कश (मम्मभेदगं) मर्मभेदी (च) और (जिणसत्थ-विरुद्धं) जिनशास्त्रों के विरुद्ध (वयं) वचन (बुहो) बुद्धिमान (णो) नहीं (भणेज्ज) बोलें।
_ भावार्थ-दूसरों का अहित करने वाले, अत्यन्त अभिमान सहित, कठोर, मर्म को भेदने वाले और जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा के विरुद्ध अर्थात् सच्चे शास्त्रों से विपरीत वचन बुद्धिमान मनुष्य नहीं बोलें।
मौन रहो या सत्य बोलो मोणमेव हिदं पुंसं, सुह-सव्वत्थसिद्धीए।
भासं भासेज्ज सच्चं हि, सव्वसत्तोवयारी जा॥14॥ अन्वयार्थ (सुहसव्वत्थसिद्धीए) सुख, सर्वार्थसिद्धि के लिए (पुंसं) पुरुष को (मोणमेव) मौन ही (हिदं) हितकर है [यदि बोलना पड़े तो] (जा) जो (सव्वसत्तोवयारी) सब जीवों का हित करने वाला है [ऐसा] (सच्चं) सत्य (भासं) वचन (हि) ही (भासेज्ज) बोलना चाहिए।
भावार्थ-वास्तविकता तो यह है कि मनुष्य को सब सुख और सब कार्यों की सिद्धि कराने वाला एक शान्त-भावों से मौन रहना ही श्रेयस्कर है, किन्तु यदि बोलना ही पड़े तो हित-मित-प्रिय वचन ही बोलना चाहिए।
णीदि-संगहो :: 133