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भावार्थ – अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, क्षमाभावना, संसार के सभी जीवों के प्रति प्रेमभाव और अपने तथा अन्य जीवों के हित की निरन्तर इच्छा रखने रूप धर्म ही कल्याणकारक है ।
जिनधर्म की विशेषता
जत्थ अस्थि सियावाओ, पक्खवादो ण विज्जदे ।
अहिंसाए पहाणत्तं, जिणधम्मो कहिज्जइ ॥40 ॥
अन्वयार्थ—(उत्थ सियावाओ अत्थि) जहाँ स्याद्वाद है ( पक्खवादो ण विज्जदे ) पक्षपात नहीं है (हिंसाए पहाणत्तं) अहिंसा की प्रधानता है वह ( जिणधम्मो ) जिनधर्म (कहिज्ज ) कहलाता है।
भावार्थ- जहाँ पर स्याद्वाद वाणी विद्यमान है। किसी प्रकार का एकान्तवाद, पक्षपात जहाँ नहीं है तथा जिसमें अहिंसाधर्म की प्रधानता है, वह जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित जैन धर्म कहलाता है।
धर्म से सुख
सुहं देवणिगाएसु, माणुसेसु च जं सुहं । कम्मक्ख समुव्वण्णे, तं सव्वं धम्म- संभवं ॥41 ॥
अन्वयार्थ—(जं) जो (देवणिगाएसु) देवसमूह में (सुहं) सुख है (माणुसेसु) मनुष्य पर्याय में (सुहं) सुखं है (च) और (कम्मक्खए समुव्वण्णे) कर्मक्षय से उत्पन्न सुख है ( तं सव्वं ) वह सब (धम्म- संभवं ) धर्म से उत्पन्न है ।
भावार्थ - देवताओं में जो विविध प्रकार का उत्तमोत्तम सुख है, मनुष्य पर्याय में धनपतित्त्व, चक्रवर्तित्व आदि का जो महान सुख है तथा तपस्या कर कर्मनाश से उत्पन्न जो अनंत सुख है, वह सभी सच्चे धर्म से उत्पन्न हुआ है, ऐसा समझना चाहिए क्योंकि बिना धर्म के सहज प्राप्त वस्तु भी नहीं प्राप्त होती है और धर्म के प्रभाव से दुर्लभ वस्तु भी प्राप्त हो जाती है।
जहाँ धर्म वहाँ जय
रावणो खयराहीसो, रामो य भूमिगोयरो । विजिदो सो वि रामेण, जदो धम्मो तदो जओ ॥42 ॥
अन्वयार्थ - (रावणो ) रावण ( खयराहीसो) विद्याधरों का स्वामी था (य) और (रामो) राम (भूमिगोयरो) भूमिगोचरी थे ( सो वि) वह भी ( रामेण ) राम के द्वारा ( विजिदो ) जीता गया [ क्योंकि ] ( जदो धम्मो तदो जओ) जहाँ धर्म होता है, वहीं जय होती है।
भावार्थ – त्रिखंडाधिपति रावण बड़े-बड़े विद्याधर राजाओं का स्वामी था,
142 :: सुनील प्राकृत समग्र