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मरण के प्रपंच से रहित होकर स्वभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय सहित सदा के लिए शांत व स्थिर हो जाऊगा। शीघ्र ही मुझे सिद्धभगवंतों, पंच-परमेष्ठियों जैसी परमदशा उपलब्ध हो, इसलिए समस्त सिद्धों को ध्यानपूर्वक नमस्कार करके भावणा सारो (भावनासार) नामक ग्रन्थ को कहूँगा। नित्यानुपम-शुद्धनिष्कर्मगुण संयुक्तोऽहम् ॥1॥
ध्यान का प्रभाव जेण भावेण जं रूवं, झाणी झायदि तच्चदो।
तेणेव तम्मओ जादि, सोवाहिफलिहो जहा ॥2॥ अन्वयार्थ-(झाणी) ध्यानी (तच्चदो) तत्त्वतः (जेण भावेण) जिस भाव से (जं रूवं) जिस रूप को (झायदि) ध्याता है (तेणेव तम्मओ जादि) उसमें ही तन्मय हो जाता है (जहा) जैसे (सोवाहिफलिहो) सोपाधि स्फटिक मणि।
अर्थ-ध्यानी तत्त्वतः जिस भाव से जिस रूप को ध्याता है, उसमें ही तन्मय हो जाता है; जैसे उपाधि सहित स्फटिक मणि।
व्याख्या-प्रस्तुत गाथा में ध्यान, ध्याता, ध्येय तथा ध्यान का फल इन चार का विचार किया गया है। 1. ज्ञान का किसी ज्ञेय में स्थिर होना ध्यान है। प्रस्तुत गाथा में 'जेण भावण' पद ध्यान की परिभाषा दर्शाता है। 2. ध्यान करने वाले को ध्याता कहते है, इस अर्थ में 'झाणी' पद रखा गया है। 3. ध्यान के विषय को ध्येय कहते है, यहाँ 'जं रूवं' पद ध्येय अर्थ में आया है। 4. ध्यान से होने वाली निष्पत्ति (लाभ) को ध्यान- फल कहते हैं, यहाँ इस अर्थ में 'तेणेव तम्मयं जादि' पद रखा गया है। उपाधि सहित स्फटिकमणि उदाहरण है। ___ ध्यान के मूलत: चार भेद हैं-1. आर्तध्यान- इसमें दुःखरूप भाव होते हैं। जैसे कि इष्ट वियोग में, अनिष्ट संयोग में, पीड़ा के चिंतन में व भोगों की चाहना रूप दुःख करना। 2. रौद्रध्यान-इसमें पापरूप भाव होते हैं। जैसे कि पाँच पाप करना कराना व किसी को करते हुए देखकर खुश होना। 3.धर्मध्यान-इसमें शुभ (शुद्ध) भाव होते हैं। जैसे तत्त्वश्रद्धा, देवशास्त्रगुरु की श्रद्धा का भाव होना। 4. शुक्लध्यान-यह परम विशुद्ध ध्यान आत्मतल्लीनता रूप है।
ध्याता मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-1.अशुभोपयोगी-ये प्राय:आर्त्तरौद्रध्यान रूप खोटा भाव रखते हैं। 2. शुभोपयोगी-ये प्रायः धर्मध्यान रूप भाव रखते हैं, कभी-कभी आत्मानुभाव भी करते हैं। 3. शुद्धोपयोगी-ये प्रायः शुक्लध्यान रूप भाव रखते हैं, कदाचित धर्मध्यान में भी होते हैं।
ध्येय-लोक के समस्त पदार्थ हैं। ध्येयों के प्रति जैसी दृष्टि होती है, वैसा ध्यान व उसका फल होता है। ध्येयों में अशुभ भाव करने पर दु:खमय चतुर्गति भ्रमण होता है, शुभ भाव करने पर स्वर्गादि सुख प्राप्त होता है तथा बाह्य ज्ञेयों का
188 :: सुनील प्राकृत समग्र