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आस्रव अशुभ व दुःखदायी है आसवो अत्थि असुहो अथिरो दुक्खस्स हेदु पोग्गलिओ।
आदा तव्विवरीओ णादा-दहा य सुहजुत्तो॥31॥
अन्वयार्थ-(आसवो) आस्रव (असुहो अथिरो दुक्खस्सहेदु पोग्गलियो अत्थि) अशुभ, अस्थिर, दुःख का हेतु व पौद्गलिक है (आदा तब्विवरीयो) आत्मा उससे विपरीत (णादा-दट्ठा य सुहजुत्तो) ज्ञाता-दृष्टा व सुखयुक्त है।
अर्थ-आस्रव अशुभ, अस्थिर, दुःख का कारण व पौद्गलिक है, जबकि जीव उससे विपरीत तथा ज्ञाता-दृष्टा व सुखादि गुणों से संयुक्त है।
___ व्याख्या-जब तक यह जीव आत्मा व आस्रवों में भेद नहीं जानता, तब . तक अज्ञानी होता हुआ क्रोधादि में प्रवर्तकर कर्मों का आस्रव करता है। जब इसे आस्रव व आत्मा में भेद ज्ञात होता है, तब आस्रव-बंध नहीं होता है। (समयसार गाथा 69-72 का भाव)
अतः यह जानना परम आवश्यक है कि कर्मास्रव अशुभ अमंगलकारी,अस्थिर अर्थात् नाशवान, दुःख का कारण व स्पर्श-रस-गंध-वर्ण वाला पौद्गलिक है। जबकि आत्मा इससे विपरीत शुभ अर्थात् मंगलमय, स्थिर अर्थात् शाश्वत, चैतन्यमय, ज्ञातादृष्टा तथा सुख आदि अनंतगुणों का गोदाम है। इसलिए आस्रवों से बचो व आत्मस्वभाव में रचो-पचो। 'आस्रवरहितचैतन्यस्वरूपोऽहम्।'
दोषी पर भी क्रोध मत करो जस्स असुह-भविदव्वं, तेहिंतो होदि दुक्कडं बहुगं।
तेसिं मा कुण कोहं, कम्मेहि दु पेरिदं किच्चं ॥32॥ अन्वयार्थ-(जस्स) जिसका (असुह भविदव्वं) अशुभ भवितव्य है (ताहिंतो) उससे (बहुगं) बहुत (दुक्कड) दुष्कृत (होदि) होते हैं (तेसिं) उनपर (कोह) क्रोध (मा) मत (कुण) करो (दु) क्योंकि (कम्मेहि) कर्मों से (पेरिदं) प्रेरित (किच्चं) कृत्य हैं। ___ अर्थ-जिसकी होनहार बुरी है, उससे बहुत दुष्कृत्य होते हैं, उन पर क्रोध मत करो; क्योंकि उसके वे कर्मों से प्रेरित कृत्य हैं।
व्याख्या-जब किसी जीव पर क्रोध आता है, तब ज्ञानीजन उसकी दुष्चेष्टाओं पर इस प्रकार विचार करते हैं कि प्रत्येक जीव तो वस्तुतः निश्चयनय से निर्दोष ही है किन्तु जिसकी भवितव्यता खराब है; उनसे इच्छा/अनिच्छा पूर्वक दुष्कृत्य हो ही जाते हैं, क्योंकि ये उसके कर्म द्वारा प्रेरित कृत्य हैं। इसलिए किसी जीव पर क्रोध मत करो। कषायभाव करके पहले ही वह दु:खी होता हुआ नए कर्मबंध कर रहा है, तब तुम कषाय करके अपना तथा दंड देने-दिलाने रूप उसका अहित क्यों करते हो। 266 :: सुनील प्राकृत समग्र