________________
जड़ जड़ है, चेतन चेतन जडवत्थु च जडत्तं,चेदा चेयणत्तं ण मुयदि कदा।
इणं भेदविण्णाणं, किच्चा चिट्ठसु णियरूवे ॥35॥ अन्वयार्थ-(जडवत्थु जडत्तं) जड़वस्तु जड़ता को (य) तथा (चेदा चेयणत्तं) चेतन वस्तु चेतनत्व को (कदा) कभी (ण मुयदि) नहीं छोड़ती (इणं भेदविण्णाणं किच्चा) यह भेदविज्ञान करके (णियरूवे) निजरूप में (चिढेसु) बैठो।
अर्थ-जड़वस्तु जड़ता को व चेतनवस्तु चेतनता को कभी नहीं छोड़ती है, यह भेदविज्ञान करके निजात्मस्वरूप में चेष्टा करो।
व्याख्या-प्रत्येक द्रव्य में दो प्रकार के गुण पाए जाते हैं-1. सामान्यगुण, 2. विशेष गुण।
1. सामान्य गुण-जो गुण सभी द्रव्यों में समान रूप से पाए जाते हैं वे सामान्य गुण कहलाते हैं। ये मुख्यतः छह हैं। यथा
(1) अस्तित्त्व गुण के कारण द्रव्य सदा अस्तित्त्व (सत्ता) में रहता है। (2) वस्तुत्वगुण के कारण द्रव्य में प्रयोजनभूत क्रिया होती है। (3) द्रव्यत्वगुण के कारण द्रव्य की अवस्थाएँ निरन्तर बदलती हैं।
(4) प्रमेयत्वगुण के कारण द्रव्य किसी न किसी ज्ञान का ज्ञेय जरूर बनता है। विश्व में ऐसा कोई द्रव्य नहीं, जो किसी ज्ञान का ज्ञेय न बनता हो।
(5) अगुरुलघुत्वगुण के कारण एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप नहीं होता तथा बिखर कर छिन्न-भिन्न नहीं हो जाता।
(6) प्रदेशत्वगुण के कारण द्रव्य का कोई आकार अवश्य रहता है।
2. विशेष गुण-जो विवक्षित द्रव्य में ही पाए जाते हैं, अन्य में नहीं। जैसेज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुण जीव में ही पाए जाते हैं। स्पर्श, रस, गंध, वर्ण पुद्गल में ही पाए जाते हैं। गति हेतुत्व गुण धर्म द्रव्य में, स्थिति हेतुत्व गुण अधर्म द्रव्य में, अवगाहन हेतुत्व गुण आकाश द्रव्य में तथा वर्तना हेतुत्व गुण काल द्रव्य में ही होता है, अन्य द्रव्यों में नहीं।
जीव में चेतनत्व गुण है, इसलिए वह चेतन है। शेष सभी द्रव्य अचेतन (जड़) हैं। यह उनके विशेष गुण हैं, अतः अपने-अपने में ही रहते हैं; एक-दूसरे में नहीं मिल जाते हैं। ऐसा भेदविज्ञान करके निज चैतन्यद्रव्य में ही तल्लीन होना चाहिए, जिससे सिद्धत्व की उपलब्धि हो।
- गुणों के समूह को अथवा गुण-पर्यायवान को द्रव्य कहते हैं। वस्तु, तत्त्व, सत्, सत्ता, अर्थ, पदार्थ, अन्वय, प्रमेय आदि द्रव्य के दूसरे नाम हैं। प्रत्येक द्रव्य अनादि-अनन्त, स्वतः सिद्ध हैं, अतः द्रव्यों तथा लोक का कोई कर्ता-धर्ता-हर्ता नही है। प्रत्येक द्रव्य में अनंत गुण शाश्वत् सिद्ध हैं, वे हीनाधिक या परिवर्तित नहीं 268 :: सुनील प्राकृत समग्र