________________
जब विकल्प नहीं होंगे तो दुख कहाँ से होगा। इन सबसे विपरीत प्रत्येक पदार्थ के प्रति निर्मत्वता ही सच्चे सुख की जननी है | अतः लोभ, रस तथा राग-भाव छोड़कर निर्ममत्व होने की चेष्टा करनी चाहिए ।
इनसे मैत्री मत करो
वा ।
दुराचारीहि दुदिट्ठी- इत्थी- चोर-खलेहि मित्तिं करेदि जो सेट्ठो, सो वि सिग्धं विणस्सदि ॥122 ॥
अन्वयार्थ - (जो ) जो ( दुराचारीहि - दुद्दिट्ठी - इत्थी - चोर - खलेहि वा ) दुराचारी, दुर्दृष्टि, स्त्री, चोर अथवा दुष्ट से (मित्तिं करेदि) मित्रता करता है (सो) वह ( सेट्ठो वि) श्रेष्ठ होते हुए भी (सिग्धं विणस्सदि ) शीघ्र नष्ट हो जाता है।
भावार्थ – कोई श्रेष्ठ आचरण वाला, ज्ञानवान, धनवान मनुष्य भी यदि दुराचारी - खोटे आचरण वाले व्यक्ति से, दुर्दृष्टि - दुर्जन से, स्त्रियों से और चोर अथवा दुष्टों से मित्रता करता है, तो वह भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं, बदनाम तथा निर्धन हो जाता है। अतः इनकी मित्रता से बचना चाहिए।
कहाँ से क्या ग्रहण कर लेना चाहिए
विसा वि अमिदं गेज्झं, अमेज्झादो वि कंचणं ।
णीचा वि उत्तमा विज्जा, थी- रयणं वि णिद्धणा ॥ 123 ॥
अन्वयार्थ - (विसा वि अमिदं) विष से भी अमृत ( अमेज्झादो वि कंचणं) शौच से भी सोना (णीचा वि उत्तमा विज्जा) नीच मनुष्यों से भी उत्तम विद्या ( थी - रयणं वि णिद्धणा) निर्धन कुल से भी स्त्री रत्न (गेज्झं ) ग्रहण करना चाहिए ।
भावार्थ - बुद्धिमान गृहस्थ वही है जो विष में से भी अमृत, शौच - विष्टा में से भी स्वर्ण, नीच मनुष्य से भी उत्तम विद्या तथा निर्धन कुलीन परिवार से भी उत्तम आचरण तथा गुणों से युक्त कन्या - रत्न ग्रहण कर लेता है। केवल सफेद चमड़ी और धन देखकर जाति - कुल का ध्यान रखे बिना जो विवाह सम्बन्ध करते हैं, वे प्रायः पछताते हैं ।
किससे क्या जाना जाता है
कुलं जाणेदि आयारो, देसं जाणेदि भासणं ।
संभमो जाणदे णेहं, देहं जाणेदि भोयणं ॥ 124 ॥
अन्वयार्थ – (आयारो कुलं जाणेदि) आचार से कुल जाना जाता है (देसं जाणेदि भासणं) भाषा से देश जाना जाता है (संभमो जाणदे णेहं) हाव-भावसे स्नेह तथा (देहं जाणेदि भोयणं) भोजन से शरीर जाना जाता है।
भावार्थ - मनुष्य के आचरण अर्थात् आचार-1
र-विचार
से उसका कुल, भाषा से
लोग - णीदी :: 171