________________
दुर्जनों का संसर्ग होने पर [ जो ] ( पलायदे ) पलायन कर लेता है ( स ) वह (जीवदे) जीता है।
भावार्थ — भयंकर उपसर्ग आने पर, गुण्डा - बदमाश द्वारा आंतकित किए जाने पर अथवा भयंकर बीमारी फैलने पर, भयंकर दुर्भिक्ष के समय तथा दुष्टजनों से तकरार होने पर जो पलायन कर जाता है, वही जीवित बचता है।
उसका जन्म ही व्यर्थ है
धम्मत्थकाम-मोक्खाणं, जस्सेगोवि ण विज्जदि ।
णिम्फलं तस्स जम्मं च जीविदं मरणं समं ॥ 128 ॥
अन्वयार्थ - (जस्स) जिसके ( धम्मत्थकाम - मोक्खाणं) धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में से (एगो वि णो विज्जदि) एक भी विद्यमान नहीं है ( तस्स जम्मं ) उसका जन्म (णिप्फलं) निष्फल है (च) और ( जीविदं मरणं समं) जीवन मरण के समान है ।
भावार्थ - जिस मनुष्य के जीवन में धर्म - धार्मिक आचरण, अर्थ-धनसम्पत्ति, काम-भोग - सामग्री तथा मोक्ष अर्थात् मोक्ष प्राप्ति हेतु तीव्र पुरुषार्थ, इन चारों में से एक भी नहीं है, उसका जीवन निष्फल और जीवन मरण के समान है। मनुष्य में चारों पुरुषार्थ होना आवश्यक हैं, किन्तु उसे कम से कम धर्म पुरुषार्थ को तो अच्छी तरह सम्पन्न कर ही लेना चाहिए क्योंकि धर्म ही कल्याणकारी है।
किसके बिना क्या नष्ट हो जाता है
आलस्सोवगदा विज्जा, परहत्थगदं धणं ।
अप्पबीयं हदं खेत्तं, णट्ठा सेणा अणायगा ॥129 ॥
अन्वयार्थ - (आलस्सोवगदा विज्जा) आलस्य को प्राप्त विद्या, (परहत्थगदं धणं) दूसरे के हाथ में गया हुआ धन (अप्पबीयं खेत्तं) अल्प-बीज युक्त खेत [ और ] (अणायगा सेणा ) नायक रहित सेना ( णट्ठा) नष्ट हो जाती है ।
भावार्थ - आलस्य करने से विद्या, दूसरे के हाथ में जाने से धन, कम बीज बोने से फसल और नायक रहित होने से सेना नष्ट हो जाती है। विद्या निरन्तर अभ्यास से, धन अपने पास रहने से, बीज पर्याप्त मात्रा में बोने से और सेना नायकसहित होने से सुरक्षित रहती है ।
किससे क्या रक्षित हो जाता है
वित्तेण रक्खदे धम्मो, विज्जा जोगेण रक्खदे ।
लज्जाए रक्खदे सीलं, णारीए रक्खदे गिहं ॥130 ॥
लोग-णीदी
:: 173