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भावार्थ-अजीर्ण-पेट की खराबी होने पर पानी पीना औषधि का काम करता है। जीर्ण-भोजन पच जाने के बाद पानी पीना बल-बढ़ाने वाला है। भोजन के मध्य में पानी पीना अमृत के समान लाभकारी है तथा भोजन के अन्त में खूब पानी पीना जहर के समान हानिकारक है।
मर्दनं गुण वर्धनं इक्खुदंडो तिलो छुद्दो, कंता हेमो य मेदणी।
चंदनं दहि-तंबूलो, मद्दणं गुण-वड्ढणं ॥145॥ अन्वयार्थ-(इक्खुदंडो तिलो छुद्दो कंता हेमो य मेदणी चंदनं दहि तंबूलो) इक्षुदण्ड, तिल, क्षुद्र, स्त्री, स्वर्ण, धरती, चन्दन, दही और पान [इनके] (मद्दणं गुण-वड्ढणं) मर्दन से गुण बढ़ते हैं।
भावार्थ-गन्ना-ईख, तिल-एक प्रकार का तेल वाला धान्य, क्षुद्र-नीच मनुष्य, कान्ता-स्त्री, सोना, खेत, चन्दन, दही और ताम्बूल-पान; इनको जितनाजितना मर्दित किया जाता है, उतने इनके गुण बढ़ते जाते हैं।
वह पंडित है मादा व पर-णारीओ, परदव्वाणि लोट्ठिव।
अप्पा व सव्वभूदाणि, जो पासदि स पंडिदो॥146॥ अन्वयार्थ-(मादा व पर-णारीओ) परस्त्री को माता के समान (परदव्वाणि लोट्ठिव) परधन को पत्थर के समान (अप्पा व सव्वभूदाणि) अपने समान सभी जीवों को (जो) जो (पासदि) देखता है (स) वह (पंडिदो) पण्डित है।
भावार्थ-जो बुद्धिमान गृहस्थ दूसरों की स्त्रियों को माता के समान अथवा अपने से उम्र में बड़ी स्त्रियों को माँ के समान, बराबर वाली को बहिन के समान और छोटी को पुत्री के समान देखता (मानता) है, दूसरों के धन को पत्थर के समान मानता है अर्थात् उस पर अधिकार नहीं करता है, तथा अपनी आत्मा के समान ही सभी जीवों की आत्मा को मानता है, वह पंडित है, ज्ञानी है।
बूंद-बूंद से घट भरे जलबिंदु-णिवादेण, कमसो परिदि घडो।
तहेव सव्वविज्जाओ, धम्मं धणं च जाणह॥147॥ अन्वयार्थ-[जिस प्रकार] (कमसो) क्रमशः (जलबिंदु-णिवादेण) जलबिन्दु गिरने से (पूरिदि घडो) घड़ा भर जाता है (तहेव) उसी प्रकार (सव्वविज्जाओ) सभी विद्याओं को (धम्म) धर्म को (च) और (धणं) धन को (जाणह) जानो।
लोग-णीदी :: 179