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दरिद्री-निर्धन, सच्चे गुरु अथवा शिक्षा गुरु की निन्दा करने वाला पातकी-पापी, स्वामी अथवा अत्यन्त निकटवर्ती व्यक्ति की निन्दा करने वाला कुष्ठी-कोड़ी तथा अपनी जाति, धर्म या गोत्र की निन्दा करने वाला कुल का नाश करने वाला निश्चित ही होता है।
सम्पत्ति के हेतुभूत गुण स-हाव-सुचिदा मित्ती, चागो सच्चं अणालसं।
सोजण्णं सूरदा एदे, गुणा संपयहेउणो॥१०॥ अन्वयार्थ-(स-हाव-सुचिदा) स्वभाव की शुचिता, (मित्ती) मैत्री-भाव (चागो सच्चं अणालसं सोजण्णं सूरदा) त्याग, सत्य अनालस्य, सौजन्य [तथा] शूरता (एदे गुणा) ये सब गुण (संपयहेउणो) सम्पत्ति के हेतु हैं।
भावार्थ-स्वभाव की निर्मलता, सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव होना, त्यागशीलता, सत्यवादिता, आलस्य (प्रमाद) की रहितता; सुशीलता-नियमित जीवन शैली और शूरवीरता ये सब गुण धन-सम्पत्ति, मान-सम्मान और पर-भव में भी सुख प्राप्त कराने वाले हैं।
गुणों से आती है गुरुता जेट्ठत्तं जम्मणा णेव, जेट्ठो गुणेहिं वुच्चदे।
गुणेहिं गुरुदा एदि, दुद्धं दहिं घिदं जहा॥91॥ अन्वयार्थ-(जेट्ठत्तं जम्मणा णेव) ज्येष्ठत्व जन्म से नहीं होता [अपितु] (गुणेहिं जेट्ठो वुच्चदे) गुणों के द्वारा ज्येष्ठता कही गयी है [क्योंकि] (गुणेहिं गुरुदा एदि) गुणों से गुरुता जन्मती है (जहा) जैसे (दुद्धं दहिं घिदं) दूध, दही [और]घी।
भावार्थ-ज्येष्ठत्व-बड़प्पन जन्म से नहीं अपितु गुणों से होता है, क्योंकि गुणों से ही गुरुता का जन्म होता है। पहले जन्म, दीक्षा, शिक्षा, प्रवेश लेने से कोई बड़ा नहीं होता, वस्तुतः गुणों से ही बड़प्पन आता है। जो गुणों में बड़ा है, वही बड़ा है। जैसे क्रमश: दूध, दही और घी। चूंकि इनका जन्म बाद-बाद में हुआ है फिर भी दूध से दही और दही से घी श्रेष्ठ (बड़ा) माना जाता है।
धैर्य है सुखकारी पुत्त-दारा-गिहेहिं च, विजुत्तेहिं धणादु वा।
बहुलके दुक्खे जादे, एगा सेय-करी धिदी ॥2॥ अन्वयार्थ-(पुत्त-दारा-गिहेहिं) पुत्र-स्त्री-घर (च) और (धणादु) धन से
160 :: सुनील प्राकृत समग्र