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स्वयं भी महान राजनीतिज्ञ और विद्याओं से सम्पन्न था, इसके विपरीत राम वनवासी
और साधारणजनों से सेवित थे, फिर भी उन्होंने रावण को पराजित कर दिया। सच ही है कि 'जहाँ धर्म होता है, वहीं विजय होती है।' इस सूक्ति के सिद्ध होने में देर हो सकती है, पर अन्धेर नहीं।
धर्म रसायन सद्दिट्ठिणाण-चारित्तं, धम्मं जो सेवदे सुही।
रसायणं व सिग्धं सो, सग्गं मोक्खं च पावदि॥43॥ अन्वयार्थ-(रसायणं व) रसायन के समान (सद्दिठि-णाण-चारित्तं) सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र [रूप] (धम्म) धर्म को (जो) जो (सुही) बुद्धिमान (सेवदे) सेवता है (सो) वह (सिग्घं) शीघ्र ही (सग्गं -मोक्खं च) स्वर्ग और मोक्ष को (पावदि) पाता है।
भावार्थ-जो बुद्धिमान व्यक्ति रसायन-श्रेष्ठ औषधि के समान सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप धर्म का निरन्तर सेवन करता है, वह शीघ्र ही जन्म-मरण-रूपी रोगों का नाश कर स्वर्ग और मोक्ष के सुखों को पाता है।
सम्यग्दर्शन का लक्षण अत्तागम-मुणिंदाणं, सद्दहणं सु-दसणं।
संकादि-दोस-णिक्कंतं, अट्ठगुणेहि भूसिदं ॥4॥ अन्वयार्थ (संकादि दोस) शंका आदि दोष (च) और आठ मद, तीन मूढ़ता, छह अनायतन (णिक्कंतं) रहित (अट्ठगुणेहि भूसिदं) और आठ गुणों से विभूषित होकर (अत्तागम-मुणिंदाणं) आप्त-आगम-मुनीन्द्रों का (सद्दहणं) श्रद्धान करना (सुदंसणं) सम्यग्दर्शन है।
भावार्थ-शंकादि आठ दोषों से रहित, ज्ञानादि आठ मदों से रहित और तीन मूढता तथा छह अनायतन से रहित एवं आठ अंगों से युक्त होकर सच्चे देव- शास्त्रगुरु का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। गाथा में आया हुआ 'च' अक्षर आठ मद, तीन मूढ़ता और छह अनायतन का वाचक है।
सम्यक्त्व की महिमा सम्मत्तं दुल्लहं लोए, सम्मत्तं मोक्ख-साहणं।
णाण-चरित्त बीयं व, मूलं धम्म-तरुस्स य॥45॥ अन्वयार्थ-(लोए) लोक में, (सम्मत्तं) सम्यक्त्व (दुल्लहं) दुर्लभ है (सम्मत्तं) सम्यक्त्व (मोक्ख-साहणं) मोक्ष का साधन है (णाण-चरित्त बीयं व) ज्ञान-चारित्र का बीज है (य) और (धम्म-तरुस्स) धर्मरूपी वृक्ष का (मूलं) मूल है।
णीदि-संगहो :: 143