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सत्य की महिमा णाणं विज्जं विवेगं हि, सुस्सरत्तं च धारणं।
वादित्तं सुकवित्तं च, सच्चादो पावदे णरो॥5॥ अन्वयार्थ-(णाणं विज्जं विवेगं) ज्ञान, विद्या, विवेक (सुस्सरत्तं) सुस्वरत्व (धारणं) धारणा (वादित्तं) वादित्व (च) और (सुकवित्तं) सुकवित्व (सच्चादो) सत्य से (हि) वस्तुतः (णरो) मनुष्य (पावदे) पाता है।
भावार्थ-ज्ञान-शास्त्रज्ञान, विद्या-विशेष गूढज्ञान, विवेक-प्रयत्नशीलता युक्त बुद्धि, सुस्वरत्व, धारणा, वादित्व, सुकवित्व अर्थात् अच्छी कविता बनाने की क्षमता ये सभी बातें एक मात्र सत्य धर्म के प्रभाव से ही मनुष्य प्राप्त करता है।
असत्य के दोष मूगत्तं मदिवेयल्लं, लोयणिंदं च मूढदं।
बहिरत्तं च रोगत्तं, असच्चादो हि देहिणं॥16॥ अन्वयार्थ-(मूगत्तं) मूकपना (मदिवेयल्लं) बुद्धि की मन्दता (मूढदं) मूर्खपना, (लोयणिंदं) लोकनिन्द्यता (बहिरत्तं) बधिरता (च) और (रोगत्तं) रोगग्रस्तता (हि) वस्तुतः (असच्चादो) असत्य से ही (देहिणं) देहधारियों को होती है।
भावार्थ-मूकपना-बोल नहीं पाना, बुद्धि की मन्दता-पागलपन, मूर्खता, ज्ञानहीनता, बहिरापन और हमेशा रोग ग्रस्तता ये सभी दोष मनुष्यों को असत्य बोलने से प्राप्त होते हैं।
अचौर्य की महिमा धण-धण्णं सुइत्थी य, गेह-वत्थादि-वेहवं।
तेसिं हवंति बाहुल्लं, अत्थेयं जेसु णिम्मलं॥17॥ अन्वयार्थ-(धण-धण्णं) धन-धान्य (सुइत्थी) सुन्दर सुशील स्त्री (गेहवत्थादि वेहवं) मकान, वस्त्रादि, वैभव (तेसिं) उनके (बाहुल्लं) बहुलता से (हवंति) होते हैं, (जेसु) जिनमें (णिम्मलं) निर्मल (अत्थेयं) अस्तेय [होता है] ।
भावार्थ-धन, धान्य, सुन्दर सुशील स्त्री, आलीशान बंगला, घर-मकान, खेत-खलिहान, सोना-चाँदी तथा वस्त्रादि वैभव उनके यहाँ बहुलता से होते हैं, जो निर्मल अस्तेय-अचौर्यव्रत का पालन करते हैं।
शील की परिभाषा सीलं हिसु-सहावो य, सीलं च वद-रक्खणं। बंभचेर-मयं सीलं, सीलं सग्गुण-पालणं॥18॥
134 :: सुनील प्राकृत समग्र