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दया की महिमा सव्वदाणं कयं तेण, सव्वे जण्णा य पूयणं।
सव्व-तित्थाहिसेगं जो, सव्वंसि कुणदे दयं ॥१॥ अन्वयार्थ-(तेण) उसने (सव्वदाणं) सभी दान (सव्वे जण्णा य पूयणं) सभी यज्ञ और पूजन (च) तथा (सव्व-तित्थाहिसेगं) सभी तीर्थों का अभिषेक (कयं) किया (जो) जो (सव्वंसि) सभी पर (दयं) दया (कुणदे) करता है।
भावार्थ-जो व्यक्ति सभी जीवों पर दया करता है, मानना चाहिए कि उसने ही सभी प्रकार के दान, सभी प्रकार के सात्विक यज्ञ और पूजन तथा सभी तीर्थों की वन्दना अथवा तत्रस्थ जिनबिम्बों का अभिषेक किया है।
जो करसी सो भोगसी बलिट्ठो जो णरो लोए, घादं करेदि णिब्बले।
सो परत्थ वि पप्पोदि, तम्हा दुक्खमणेगसो॥10॥ अन्वयार्थ-(लोए) लोक में (जो) जो (बलिट्ठो णरो) बलवान मनुष्य (णिब्बले) निर्बलों का (घादं) घात (करेदि) करता है (सो) वह (परत्थ वि) परलोक में भी (तम्हा) उससे (अणेगसो दुक्खं) अनेकों दुःखों को (पप्पोदि) प्राप्त करता है।
भावार्थ-इस लोक में जो बलवान मनुष्य, निर्बल जीव-जन्तु, पशु-पक्षियों अथवा मनुष्यों को सताते हैं, मारते हैं, वे इस पाप के फल से उनके द्वारा परलोक में अनेक दुःख पाते हैं। अतः किसी भी जीव को दु:ख नहीं पहुँचाना चाहिए।
पाप शीघ्र ही फल देता है सामीत्थी-बालहताणं, सिग्धं फलदि पादगं।
इह लोए परे लोए, पावंति दुक्ख-दारुणं॥11॥ अन्वयार्थ-(सामीत्थी-बालहताणं) स्वामी, स्त्री और बालकों को मारने वालों का (पादगं) पातक (सिग्घं) शीघ्र (फलदि) फलता है [जिससे वे] (इह लोए) इस लोक में [और] (परे लोए) परलोक में (दारुणं-दुख) भयंकर दुःखों को (पावंति) पाते हैं।
भावार्थ-स्वामी अर्थात् आजीविका देने वाला मालिक, स्त्री, अर्थात् कोई भी महिला तथा बालक, चाहे वह गर्भ में ही क्यों न हो, इनकी हत्या करने वाले अतिशीघ्र ही इस लोक में तथा परलोक में किए हुए पाप के महानफल को भयंकर दुःख पाते हुए भोगते हैं।
132 :: सुनील प्राकृत समग्र