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[जिनके] (पहाणुगामी) पथ के अनुगामी जन (गुणाणि) गुणों को (लहदे) प्राप्त करते हैं [उन] (सिरि वड्ढमाणं) श्री वर्धमान जिनेन्द्र को [मैं] (णिच्चं) नित्य (णमामि) नमन करता हूँ।
अर्थ-जिनकी पूजा के भाव से प्रमोद युक्त मेंढक देवत्व को प्राप्त हुआ था और जिनके पथ के अनुगामी जन गुणों को प्राप्त करते हैं, उन श्री वर्धमान जिनेन्द्र को मैं नित्य नमन करता हूँ।
लोगम्मि अच्चंतपइट्ठिओ जो, संपुण्ण-जीवाण हि दुक्खकारी। सो कामदेवो वि हदो जिणेण, णमामि तं हं सिरि-वड्ढमाणं॥4॥
अन्वयार्थ-[जो] जो (लोगम्मि अच्वंत पइट्ठिओ) अत्यन्त प्रतिष्ठित है (संपुण्ण जीवाणहि दुक्खकारी) सम्पूर्ण जीवों को दुःख देने वाला है (सो) वह (कामदेवो वि) कामदेव भी (जिणेण हदो) जिन के द्वारा नष्ट किया गया (तं) उन (सिरि वड्ढमाणं) श्री वर्धमान को (हं) मैं (णमामि) नमन करता हूँ।
अर्थ-जो महाबलशाली है, लोक में प्रतिष्ठा को प्राप्त है और सभी जीवों को दुःख देने वाला है, वह कामदेव भी जिनके द्वारा मारा गया, उन श्री वर्धमान जिनेन्द्र को मैं नित्य नमन करता हूँ।
विस्सट्ट-मोहस्स विघादकारी, समदागुणेण कल्लाणकारी। णिद्दोसबंधूकरुणा-णिहाणं, णमामि णिच्चं सिरि-वड्ढमाणं॥5॥
अन्वयार्थ-(विस्सट्ट) विस्तृत (मोहस्स) मोह के (आतंकहारी) आतंक को हरने वाले (समत्त-भावेण) समता भाव से (कल्लाणकारी) कल्याण करने वाले (णिद्दोस बंधू) निर्दोष बंधु [तथा] (करुणा-णिहाणं) करुणा के निधान (सिरि वड्ढमाणं) श्री वर्धमान जिनेन्द्र को [मैं] (णिच्चं) नित्य (णमामि) नमन करता हूँ।
अर्थ-जो विस्तृत मोह के आतंक को हरने वाले हैं, समता भाव से कल्याण करने वाले हैं, निरपेक्ष निर्दोष बंधु हैं तथा करुणा के निधान हैं, उन श्री वर्धमान जिनेन्द्र को मैं नित्य नमन करता हूँ।
विरोहिणो जस्स सुसासणं हि, समिक्खिदं वा दरिसिज्ज सव्वं। सिग्धं सदा खंडिद-माणसिंगा, णमामि तं हं सिरि-वड्ढमाणं॥6॥
अन्वयार्थ-(जस्स) जिनके (सव्वं) समग्र (सुसासणं) सुशासन को (समिक्खिदं) समीक्षित (दरिसिज्ज) देखकर (च) अथवा सुनकर (विरोहिणो) विरोधी (हि) निश्चयकर (सिग्घं) शीघ्र ही (खंडिद माणसिंगा) खंडित मानश्रृंग अर्थात् मान रहित हो जाते हैं (तं) उन (सिरि वड्ढमाणं) श्री वर्धमान जिनेन्द्र को (हं) मैं (णिच्चं) नमन करता हूँ। 54 :: सुनील प्राकृत समग्र