________________
णव- देवदा-त्थुदी
(नवदेवता - स्तुति गाहा छन्द)
अरहंत
पाडिहेरजुत्ताणं, कल्लाणादिसयादि - संपण्णाणं ।
पत्तं चदुट्ठयाणं, णमोत्थु सव्वारिहंताणं ॥ 1 ॥
अन्वयार्थ - ( पाडिहेरजुत्ताणं) प्रातिहार्य युक्त (कल्लाणादिसयादि संपण्णाणं) कल्याणातिशय आदि संपन्न [ चदुट्ठयाणं पत्तं ] चतुष्टयों को प्राप्त (सव्वारिहंताणं) सर्व अरहंतों के लिए (णमोत्थु ) नमस्कार हो ।
अर्थ - अष्ट प्रातिहार्यों से युक्त, पंचकल्याणक, आदि से सम्पन्न तथा अनंत चतुष्टय को प्राप्त सभी अरहंतों के लिए नमस्कार हो ।
सिद्ध
अट्ठसुगुणजुत्ताणं, णट्ठट्ठकम्मरयपुंजाणं ।
-
सयल - सीलसहियाणं, णमो सया सव्वसिद्धाणं ॥2 ॥ अन्वयार्थ - ( णट्ठट्ठकम्मरय पुंजाणं) अष्टकर्मरज पुंज को नष्टकर (अट्ठसुगुणजुत्ताणं) अष्टगुणसंपन्न (सयल - सील सहियाणं) सकल शील संयुक्त (सव्वसिद्धाणं) सभी सिद्धों के लिए (सया) सदा ( णमो ) नमस्कार हो ।
अर्थ - अष्टकर्म रूपी रज पुंज को नष्ट कर अष्ट गुणों को प्राप्त करने वाले, सकल गुण संपन्न तथा शील संयुक्त सभी सिद्धों के लिए सदा नमस्कार हो ।
आचार्य
पंचाचार-जुदाणं, पवयण- कहणे सुजुत्ति- कुसलाणं । धीराण- सुसीलाणं, आयरियाणं णमो लोए ॥3 ॥
-
अन्वयार्थ — (पंच- आयार जुदाणं) पाँच आचार युक्त (पवयण कहणे) प्रवचनकथन में (सुजुत्ति-कुसलाणं) सुयुक्ति कुशल ( धीराणं- सुसीलाणं) धीर सुशील (लोए) लोक के (आयरियाणं) आचार्यों के लिए (णमो) नमस्कार हो ।
अर्थ - ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार व वीर्याचार इन पाँच आचार युक्त प्रवचन - कथन में, युक्ति देने में अत्यन्त कुशल धीर-गंभीर तथा सुशील श्रेष्ठ आचार्यों को नमस्कार हो ।
णव - देवदा-त्थूदी :: 85